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वर्धमान जीवन कोश
१२३ मुनिर्यामक मागए णं देवाणुप्पिया ! इह महानिज्जामए ? केणं देवाणुप्पिया । महानिज्जामए ? समणे भगवं हावीरे महानिजामए । से केण?णं ? एवं खलु देवाणुप्पिया। समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे जावविलुप्पमाणे बुडमाण निबुडमाणे उप्पियमाणे अम्मईए नावाए निव्वाणतीराभिमुहे साहत्थिं सम्पावेइ, से तेणणं देवाणुप्पिया! एवं वुच्चइसमणे भगवं महावीरे महानिजामए ।।
-उवा० अ ७ । सू ४६ श्रमण भगवान् महावीर महानिर्यामक हैं; क्योंकि श्रमण भगवान् महावीर संसार रूप महासमुद्र में नाशको होते हुए, विनाश को प्राप्त होते हुए यावत् विलुप्त होते हुए, बुडते हुए, अत्यन्त बुडते हुए 'उप्पियमाण गोथा हत जीवों को धर्म बुद्धिरूप नौका से निर्वाण रूप तीर के सन्मुख स्वयं के हाथ से पहुंचाते हैं -इस कारण गवान् महावीर को महानिर्यामक कहा है। मंगल और तप शन्दों में वर्धमान बढमाणक ( वर्द्धमानक)
आठ मंगल में से एक मंगल का नाम । अट्ठमंगलया पुरओ अहाणुपुठवीए संपढ़िया । तंजहा -सोवस्थिय १, सिरिवच्छ २, णंदियावत्त ३ बदमाणक ४, भद्दासण ५, कलस ६, मच्छ ७, दप्पणया ८।
-ओव० सू ६४ भाठ मंगल के नाम इस प्रकार हैं- १- स्वस्तिक, २-श्रीवत्स, ३-नन्याधत्तं, ४-बद्ध मानक, द्वाप्सन, ६- फलश, ७-मत्स्य और ८-दर्पण । आयंबिलवद्धमाणं (आयंबिल वर्द्धमान) (भगवओ महावीरस्स अंतेवासी निग्गंथा )
भदंपडिम महाभद्दपडिमं सव्व ओभद्दपडिमं आयंबिलवद्धमाणं तवोकम्म पडिवण्णा ।-ओव०स २४ । भगवान महावीर के बहुत से निग्रन्थ भद्र प्रतिमा, महाभद्र प्रतिमा, सर्वतोभद्र प्रतिमा और आयम्बिल न तपः कर्म करनेवाले थे। तीर्थप्रवर्तन काल ाि सया अडहत्तरिजुत्ता वासाण पासणाहस्स, इगिवीससहस्साणि दुदाल वीरस्स सो कालो।
-तिलोप० अधि ४/गा १२७४ । वीर भगवान् का तीर्थकाल इक्कीस हजार व्यालीस वर्ष प्रमाण है। वर्धमान के समय चारित्र पञ्चक्खाणमिणं संजमो य पढमंतिमाण दुविगप्पो। सेसाणं सामइतो सत्तरसंगो अ सव्वेसि ॥
-आव० निगा-२५६ मलयटीका-संयमोऽपि-सामायिकादिरूपा प्रथमान्तिमजिनयोढिविकल्पः, इखरं सामायिक दोपस्थानीयं चेत्यर्थः, शेषाणां-मध्यमामा द्वाविंशतितीर्थकृता यावत्कधिकमेवैक सामायिक, न शेषं
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