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वर्धमान जीवन - कोश
ल ज्ञानोत्पत्ति के समय आसनकंपन
सुवणस्स ताहे अइसयकोडीय हो दिपक्खोहो । सोहम्मपहुदिई दाण आसणाइ पि कंपंति ||७०६ || -तिलोप• अधि ४
केवलज्ञान उत्पन्न होने पर तीनों लोकों में अतिशय क्षोभ उत्पन्न होता है और सौधर्मादि इन्द्रों के आसन मान होते हैं ।
वर्धमान की अंतक्रिया और परिनिर्वाण
अहं च णं इमीसे ओसप्पिणाए चडवीसाए तित्थंकराणं चरिमे तिस्थंकरे सिज्झिरस जावअंत करेस्सं ति -भग० श १५.
इस अवसर्पिणी काल में ऋषभदेव यावत् चरम तीर्थ कय- वर्धमान सिद्ध हुए, बुद्ध हुए यावत् अंतक्रिया की ।
भगवान् महावीर के पर्यायवाची नाम
महामाहण
XXX सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी - आगए णं देवाणुपिया ! इहं महामाहणे ? तणं से सद्दालपुत्त समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्त एवं वयासी - के णं देवाणु पिया ! महामाहणे ? तए णं से गोसाले मंखलिपुत्त सद्दालपुत्त' समणोवासयं एवं वयासी
समणे भगवं महावीरे महामाहणे ! से केणडणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे महामाहणे ? एवं खलु सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महासमणे उप्पण्णणाणदंसणघरे जाव महियपूइए, जाव तच्चकम्मसम्पया संपत्त े से तेणटुणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ समणे भगव महावीरे महामाहणे ।
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- उवा० अ ७ / सू ४४ से ४६ श्रमण भगवान् महावीर - महामाहण है; क्योंकि उत्पन्न हुए ज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले याचत -स्तुति कराये हुए और पूजित है यावत् तथ्य कर्म की संपत्ति से युक्त है ।
महागोप
आगए णं देवाण पिया ! इहं महागोवे ? के देवाणुप्पिया । महागोवे ? समणे भगवं महावीरे महागोवे । से ग ेणं देवाणुपिया | जाव महागोवे ? एवं खलु देवाणुपिया । समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे धम्ममरणं दंडेण सारक्खमाणे संगोवेमाणे निव्वाणमहावाडं साहस्थिं संपावेइ, से तेण सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे महागोवे |
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- उवा० अ । सू
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