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वर्षमान जीवन कोश नन्दन मुनि साठ दिन अनशन व्रत का पालन कर, पचीस लाख वर्ष का आयुष्य पूर्णकर, मृत्यु प्राम प्राणत नामक दश देवलोक में पुष्पोत्तर विमान में बोस सागरोपम की स्थिति वाले देव रूप में उत्पन्न हुए। (ग. समणे भगवं महावीरे x x x महाविजयसिद्धन्थपुप्फुत्तर-पवर-पुण्डरीय-दिसासोवस्थिय वद्धमा महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता x x x |
-आया. श्रु २ । अ १५ । सू० ३ । पृ.२ (घ) आयुविंशतिसागरोपममितं सोऽपूरि देवाग्रणीः, पर्यन्तेऽपि विशेषतः प्रतिकलं देदीप्यमानः श्रिया॥
मुह्यन्ति ह्यपरे त्रिविष्टपसदः षण्मासशेषायुषः। काप्युच्चैनं तु तीर्थकृदिविषदोऽत्यासन्नपुण्यो ।। २८४॥
-त्रिशलाका० पर्व १० । सम वर्षमान महावीर बीस सागरोपम का मायुष्य पूर्ण किया-अन्य देव ६ मास के आयुष्य के शेष रहने मोह को प्राप्त होते हैं परन्तु तीर्थकर होने वाले देवों के अतिशय पुण्योदय होता है नजदोक होने पर भी बिल्कुल । को प्राप्त नहीं होते है।।
३२२ अच्युत स्वर्ग का इन्द्र अथवा प्राणत स्वर्ग का इन्द्र (क) ततस्तद्योगपाकेन सोऽच्युतेन्द्रोऽभवद्यतिः। दिवि षोडशमेऽनेकभूतिवाधौं सुरार्चितः ।। १०४ ॥
त्रिकरोच्चातिदिव्याङ्गधरो नेत्रप्रियो महान् । स्वेदधातुमलातीतो नयनस्पन्दवर्जितः ॥ १६॥ षटप्रभावनिपर्यन्तान् रूपिद्रव्यांस्त्रिधात्मकान्। जानन् स्वावधिबोधेन विक्रिय द्धिप्रभावतः ।। १६६) गमनागमनं कर्तु क्षमः क्षेत्र स्वचित्समे। द्वाविंशत्यब्धिमानायुविश्वाभरणभूषितः ।। १६० द्वाविंशतिसहस्राब्दगतैः सर्वाङ्कतृप्तिदम्। दिव्यं सुधामयाहारमाहरन्मनसोर्जितम् ॥ १६८ एकादशप्रमैर्मासनिष्क्रांतश्च मनाग्भजन् । सुगन्धिदिव्यमुच्छवासं सुरभीकृतदिक्चयम् ॥ १६९
-वीरच० अधि
(ख) जीवितान्ते समासाद्य सर्वमाराधनाविधिम् । पुष्पोत्तरविमानेऽभूदच्युतेन्द्रः सुरोत्तमः ।। २४६
द्वाविंशत्यब्धिमेयायुररस्नित्रयदेहकः। शुक्लेश्याद्वयोपेतो द्वाविंशत्या स निःश्वसन् ॥ २४७ पक्षैस्तावत्सहस्राब्दैराहरन् मनसामृतम् । सदा मनःप्रवीचारो भोगसारेण तृप्तवान् ।। २४८ आषष्ठपृथिवीभागाद्व्याप्तावधिविलोचनः स्वावनिक्षत्रसंमेयबलाभाविक्रियावणिः ।। २४६
-उत्तपु० पर्व नन्दन मुनिराज उस समाधि योग के फल से अनेक प्रकार की विभूति के समुद्र ऐसे सोलहवें अच्युतकल्प देवों से पूजित अच्युतेन्द्र उत्पन्न हुए। वह इन्द्र तीन हाप उन्नत, अति दिव्य देह का धासक, नेत्रों को अतिप्रिय स्वेद पातु आदि सब मलों से रहित और नेत्र-टिमकार से रहित था। छट्ठी पृथ्वी तक के तोन प्रकार के रूपी द्रव्य को अपने अवधि ज्ञान से जानता हुआ वह देव अवधि ज्ञान प्रमाण क्षेत्र में विक्रिया ऋद्धि के प्रभाव से गमनागम करने में समर्थ था। बाइस सागर प्रमाण आयु थी और सब उत्तम आभरणों से भूषित था।
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