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बर्धमान जीवन कोश
६७ दोनों कुमारों ने मन्त्री से पूछा-यह कौन है ? प्रत्युत्तर में मन्त्री ने कहा-यह दूत महापराक्रमी अश्वग्रीव राजा का प्रधान रूप है । तत्पश्चात् अचल और त्रिपृष्ठ स्वयं के पुरुषों को आज्ञा की-जब यह दूत यहां से चला जाय तब मुझे सूचित करना ।
प्रजापति राजा कुछ दिन दूत को अपने पास रखा-बाद में उसे सत्कार-सम्मान देकर बिदा किया । दूत ने वहाँ से प्रस्थान किया। इसकी सूचना कुमार के व्यक्तिओं ने आकर दोनों कुमारों को दी। कुमारों ने उस दूत को अर्धमार्ग में आडा किया और स्वय के सुभटों के पास से उसे सम्यग् प्रकार मारमरायी। उस समय उसकी सहायता करने बाले सुमट साथ में थे परन्तु वे सब काक पक्षी की तरह भाग गये।'
यह खबर प्रजापति राजा को मालूम हई फलस्वरूप उस चडवेग दूत को वापस स्वय के पास बुलाया भौर अधिक सत्कार कर कहा-" हे चण्डवेग । ये मेरे कुमार का अविनय अपने स्वामी अश्वग्रीव को मत कहना-क्योंकि अज्ञान से हुए दुर्विनय से महाशय पुरुष कोप नहीं करते हैं।
प्रत्युत्तर में दुत ने कहा 'बहुत अच्छा । ( आमेति )-ऐसा कहकर दूत चला परन्तु उसके साथ जो सुभट थेउन्होंने आगे जाकर अश्वग्रीव राजा को यह सर्व वृत्तांत सूचित किया ।
'अश्वग्रीव यह वाती जानी है. ऐसा समझ में आने से असत्य बोलने से भय को प्राप्त चण्डवेग भी स्वयं के ऊपर जो उपद्रव हआ था उसकी वार्ता यथार्थ रूप से कही।
तत्पश्चात् अश्वग्रीव राजा दूसरे मनुष्यों को समझा कर प्रजापति राजा के पास भेजकर सदेश भेजा-तुम तुगगिरि जाकर सिंह से शाली को रक्षा करो-यह अश्वग्रीष राजा की आज्ञा है। दूसरे मनुष्यों से यह वृत्तांत सुनकर प्रजापति राजा ने स्वय के कुमारों को कहा-तुमने अपने स्वामी आश्वग्रीव को कृपित किया है इस कारण उसने वारी बिनाभी सिंह से शालीक्षेत्र की रक्षा करने की मुझे आज्ञा दी है।
इस प्रकार कहकर प्रजापति राजा वहां जाने के लिए तैयारी की परन्तु दोनों कुमार उन्हें निवारण कर सिंह के युद्ध में कौतुको होकर स्वय शंखपुर की ओर प्रस्थान किया। वहां पहुँचकर बाद में त्रिपृष्ठ ने शालीक्षेत्र के रक्षक गोपलोगों को पूछा कि-अन्य राजा गण जब यहाँ आते है तब वे इस सिंह से किस प्रकार रक्षा करते है। और उस वक्त वे कहाँ रहते हैं। प्रत्युत्तर में गोपलोगों ने कहा-दूसरे-दूसरे राजा प्रत्येक वर्ष बारी-बारी से आते हैं। वे जहाँ तक रहते है वहां तक शालो की रक्षा के लिए चतुरंग सेना को शाली क्षेत्र पर किलाकर रक्षा करते है।
त्रिपृष्ठ घासुदेव ने कहा- "इतनी देर तक यहाँ कौन रहेगा अतः मुझे आप सिह बताइये-जिसको में एकेला ही उसे मार दूंगा।
तत्पश्चात् उन्होंने तुगगिरि की गुफा में सिंह को बताया। राम और वासुदेव अश्वरथ में बैठकर उस गुफा के पास आये। गफा के पास लोगों ने कोलाहल किया । फलस्वरूप गफा से मुंह को फाड़ता हुआ केशरी सिंह बाहर निकला। उसे देखकर कहा-यह सिंह पैदल बिहारी है और मैं रथी हूं अतः हम दोनों का युद्ध एक समान नहीं कहा जा सकता। ऐसा धारकर त्रिपृष्ठ हाथ में ढाल-तलवार लेकर रथ से नीचे उतर गया।
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