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वर्धमान जीवन-कोश .२+++प्रथम दो चक्रवर्ती के बाद-त्रिपृष्ठ वासुदेव चक्किदुगं हरिपणगं I+++
-आव० निगा ४२१ मलयटीका-प्रथममुक्तलक्षणकाले चक्रवर्तिद्वय भविष्यत्यभवद्धा, ततस्त्रिपृष्ठादिहरिपंचकं । . प्रथम दो चक्रवर्ती भरतचक्रवर्ती व सागर चक्रवर्ती के बाद त्रिपृष्ठादि पंच धासुदेव हुए।
अर्थात् तीसरे चक्रवर्ती पांचवें वासुदेव के बाद हुए। .३ त्रिपृष्ठ वासुदेव के माता-पिता का नाम(क) जंबुद्दीवेणं दीवे भारहे वासे इसीसे ओसप्पिणीए नवबलदेव-वासुदेव पियरो होत्था, तंजहा
पयावई य बंभे, रोद्दे सोमे सिवेतिय । महसिहे अग्गिसिहे, दसरहे नवमेय वसुदेवे ॥
जंबुद्दीवेणं दीवे भरहे वासे इमीसे ओस प्पिणीए णव वासुदेवमायरो होस्था, तंजहा. मियावई उमाचेव, पुहवी सीया य अम्मया। लच्छिमई सेसवई, केकई देवई इय ॥
-सम० सू २३८, २३६ चूंकि इस अवसर्पिणी काल के भरतक्षेत्र में त्रिपृष्ठ वासुदेव-प्रथम वासुदेव थे। उनके पिता का ना प्रजापति तथा माता का नाम मृगावती था। ४ त्रिपष्ठ बासुदेव का निदान-पूर्वभव का(क) एएसि नवण्ह वासुदेवाणं पुब्वभविया नव धम्मायरिया होत्या, तंजहा–संभूय सुभद्दे सुदंससे
य सेयंसेकण्ह गगदत्त य । सागरसमुद्दनामे, दुमसेणे य णवमए । एए धम्मायरिया कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । पुव्वभवे आसिह, जत्थ नियाणाई कासी य ।
एएसिं नवण्ह वासुदेवाणं पुत्वभवे नव नियाणभूमिओ होत्था, तंजहा - महुरा य xx हस्थिणपुर च। एएसि ण नवण्ह वासुदेवाण नवनियाणकारणा होत्था, तंजहा-गावी जुवे जाव माउया इय ।
- सम० सू० २४३-२४ त्रिपृष्ठ वासुदेव के पूर्वभव के आचार्य का नाम संभूति था। पुरुषों में प्रधान कीर्तिवाले वासुदेव के पूर्व भव में संभूति धर्माचार्य के पास चारित्र ग्रहणकर निदान किया ।
त्रिपृष्ठ वासुदेव-पूर्वभष में गाय के कारण से निदान किया। (क) एएसिण णवण्ह बलदेववासुदेवाण पुठवभविया नव-नव नामज्जा होत्या, तंजहा
"विस्सभूई पव्वइए' धणदत्त समुद्ददत्त सेवाले। पियमित्त ललियमित्त पुणव्वसु गंगदत्तेय ॥१॥ एयाई नामाई पुव्वभवे आसि वासुदेवाण ।
-सम० ० २४२
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