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पुद्गल-कोश •४० परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स असंखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दवट्ठपएपेट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा० ४ ? गोयमा ! जहा-रयणप्पभाए अप्पाबहुयं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं, एवं जाव आयते।
-पण्ण पद १० । सू १७ हे भगवन ! असंख्याता प्रदेशमा रहेला असंख्मातप्रदेशिक परिमंडल संस्थनना अचरम खण्ड, चरम खण्ड, चरमान्तप्रदेशो अने अचरमान्तप्रदेशोमां द्रव्यार्थपणे, प्रदेशार्थपणे, अने द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थपणे कोण कोनाथी अल्प, बहु, तुल्य के विशेषाधिक छे ? हे गौतम ! जेम रत्नप्रभानु अल्पबहुत्व कह्य,तेमज बधु कहेवु । ए प्रमाणे यावत् आयत संस्थान सुधी जाणवु।
अर्थात् -असंख्यातप्रदेश में स्थित असंख्यातप्रदेशी परिमंडल संस्थान के अचरमखण्ड, चरमखण्ड, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेशों में द्रव्यरूप से, प्रदेशरूप से व द्रव्य प्रदेशरूप से अल्पबहुत्व के विषय में - जैसा रत्नप्रभानारकी का अल्पबहुत्व कहा है वैसा ही जानना चाहिए ।
इसी प्रकार वृत्त यावत् आयत संस्थानों के विषय में जानना चाहिए ।
मूल पाठ-इमी से णं भंते ! रयणप्पयाए पुढवीए अचरिमस्स य चरमाण य चरिमंतपएसाण य अचरमांत पएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुआ वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवे इमीसे रयणप्पायाए पुढवीए दवट्ठयाए एगे अचरिमे, चरमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरमंच चरमाणि य दोवि विसेसाहिया।
-पण्ण० प १० । सू ३ द्रव्य रूप में
१-सबसे कम असंख्यातप्रदेश में स्थित असंख्यातप्रदेशी परिमंडल संस्थान के द्रव्यरूप से एक अचरमखण्ड है।
२-उससे बहुत चरमखण्ड असंख्यातगुणे है ।
३-उससे दोनों अचरमखण्ड और बहुत चरमखण्ड दोनों मिलकर विशेषाधिक है।
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