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पुद्गल-कोश गुणे है। ३, ( इनकी अपेक्षा) वे ( संख्यात समय की स्थितिवाले पुद्गल ) प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणे है। ४, ( इनसे ) असंख्यात समय की स्थितिवाले पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे है । ५, (और इनसे ) वे (असंख्यात समय की स्थितिवाले पुद्गल ) प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे है।
'३९ गुण को अपेक्षा से पुद्गल की अल्पबहुत्व
एतेसि ण भंते ! एगगुणकालगाणं संखेज्जगुणकालगाणं असंखेज्जगुणकालगाणं अणंतगुणकालगाणं पोग्गलाणं दवट्टयाए पदेसट्टयाए बब्वट्ठपदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! जहा परमाणुपोग्गला ( सू ३३० ) तहा भाणितन्या । एवं संखेज्जगुणाकालगाणं वि।
एवं सेसा वि वण्ण-गंध-रसा भाणितव्वा। फासाणं कक्खड-मउयगरुय-लहुयाणं जहा एगपदेसोगाढाणं (सू ३३१) भणितं तहा भाणितव्वं । अवसेसा फासा जहा वण्णा भणिता जहा माणितम्या।
-पण्ण० पद ३ । सू ३३३
जिस प्रकार पुरमाणु पुद्गलों के विषय में (सू ३३० में) कहा गया है, उसी प्रकार इन एक गुण काले, संख्यातगुण काले असंख्यातगुण काले और अनंतगुण काले पुद्गलों में से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य-प्रदेशों की अपेक्षा अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
___ इसी प्रकार संख्यातगुण काले ( एवं असंख्यातगुण काले तथा अनंतगुण काले) पुद्गलों के विषय में भी ( पूर्ववत् सू ३३० के अनुसार ) समझ लेना चाहिए।
इसी प्रकार शेष वर्ण ( नील, लाल, पीले व श्वेत ) तथा ( समस्त ) गंध, एवं रस के ( एक गुण से अनंतगुण तक के ) पुद्गलों के अल्पबहुत्व के सम्बन्ध में कहना चाहिए तथा कर्कश, मृदु ( कोमल ) गुरु और लघु स्पर्शो के ( अल्पबहुत्व ) विषय में जिस प्रकार (सू ३३१ में ) एकप्रदेशावगाढ़ आदि का ( अल्पबहुत्व ) कहा गया है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिए । ( देखें क्रमांक ३७ ) ___ अवशेष ( चार ) स्पर्शों के विषय में जैसे वर्णों का ( अल्पबहुत्व ) कहा हैवैसे ही कहना चाहिए।
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