________________
३६८
पुद्गल - कोश
-५१६ स्कंध पुद्गल - अनर्द्ध भी है, सार्द्ध भी है, अमध्य भी है, समध्य भी
है तथा प्रदेशी है
(क) दुप्पएसिए णं भंते! बंधे कि सअड्ढ, समज्झे, सपएसे, उदाहु अणड्ढे, अमज्भे, अपएसे ? गौयमा ! सअड्डे, अमज्झ, सपएसे, णो अणड्डू, णो समझे, णो अपएसे ।
तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ? सप से, जो सअड्ड े, जो अमज्भे, णो अपएसे ।
जहा दुप्पएसिओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा ।
गोयमा ! अणड्डू, समज्भ,
संखेज्जप एसिए णं भते ! कि खंधे सअड्ड पुच्छा ? गोयमा ! सिय सअड्ड े, अमज्भे, सपएसे, सिय अणड्डू, समझ, सपएसे ।
जहा संखेज्जपएसिओ तहा असंखेज्जपए सिओ वि, अनंतपएसओ वि । - भग० श ५ | उ ७ । सू १० से १२ | पृ० ४८३
टीका- 'दुप्पएसिए' इत्यादि, यस्य स्कंधस्य समाः प्रदेशाः स सार्धः, यस्य तु विषमाः स समध्यः, संख्येय प्रदेशिकादिस्तु स्कंधः समप्रदेशिकः इतरश्च तत्र यः समप्रदेशिकः स सार्धोऽमध्यः, इतरस्तु विपरीत इति ।
(ख) दुपएसिए णं पुच्छा । ( कि सड्ड े, अणड्डू ? ) गोयमा ! सड्ढे, नो अणड्डू । तिपएसिए जहा परमाणुपोग्गले ( नो सड्डू, अणड्डू । ) चउएसिए जहा दुपएसिए । पंचपएसिए जहा तिपएसिए । छप्पएसिए जहा दुपए सिए । सत्तपएसिए जहा तिपएसिए । अट्ठपएसिए तहा दुपएसिए । नवपए सिए जहा तिपएसिए । दसपएसिए जहा दुपसिए ।
संखेज्जपएसिए गं भंते! बंधे – पुच्छा । गोयमा ! सिय सड्डू, सिय अणड्डू । एवं असंखेज्जपए सिए वि । एवं जाव अनंतपएसिए वि ।
द्विप्रदेशी स्कंध - सार्धं है, समध्य नहीं है और अप्रदेशी भी
Jain Education International
- भग० श २५ । उ ४ । सू ८५-८६ । पृ० ८६८ सप्रदेशी है और अमध्य है किन्तु अर्द्ध नहीं है, नहीं है |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org