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पुद्गल-कोश अतः स्कंध पुद्गल अपेक्षा दृष्टि से नित्य-अवस्थित द्रव्य है । तभावाव्यय नित्यम् ।
-तत्त्व० अ ५ । सू ३० । छाया जिसके स्वभाव का व्यय नहीं हो तथा जो सर्वथा विनष्ट नहीं हो वह नित्य है।
अवस्थित ग्रहणादन्यूनाधिकत्वामाविर्भाव्यते, अनादिनिधने यत्ताम्यां न स्वतत्त्व व्यभिचरन्ति।
-तत्त्व. अ५ । सू ३ । सिद्धसेनगणि टीका जो संख्या में कमते या बढते नहीं हैं, जो अनादि निधन है, जो सदा स्वस्वरूप में रहते हैं तथा जो न दूसरे को अपने रूप में परिणमाते हैं वे अवस्थित है। .५१.४ स्कंध पुद्गल का अजीवत्व
रूविअजीवदव्वा गं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा ! चउव्विहा पन्नत्ता, तंजहा-खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला।
–पण्ण० प १। सू ६ । पृ. २६५
-जीवा. प्रत्ति १ । सू ५ । पृ० १.५ सर्व प्रकार के स्कंध पुद्गल-अजीव हैं । ५१.५ स्कंध पुद्गल का रूपित्व-मूर्तित्व (क) खंधा य खंघदेसा य तप्पएसा तहेव य। परमाणुणो य बोद्धव्वा, रूविणो य चउन्विहा ।
-उत्त० अ ३६ । गा १० । पृ. १०५० (ख) रूपमेषामस्त्येषु वाऽस्तोति रूपिण इति । एषामिति पुद्गलानां परमाणुद्वयणुकाविक्रमभाजाम्, उक्तलक्षणं रूपं मूर्तिः सा विद्यत इति रूपिणः।
-तत्त्व सिद्ध० अ ५ । सू ४ । पृ० ३२५ स्कंध पुद्गल रूपी है-मूर्तिवान् है। वर्ण-गंध-रस-स्पर्श गुणों के कारण स्कंध पुद्गल को मूर्तिवान् कहा है।
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