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पुद्गल-कोश ३१.४ अजीवत्व
(क) रूविअजीवदन्वा णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता? गोयमा ! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा-- खंधा, खंघदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला।
----पण्ण० प १ । सू ६ । पृ० २६५
-जीवा० प्रत्ति १ । सू ५ । पृ० १०५ परमाणु पुद्गल-अजीव है ।
(ख) रूवियाजीवविभत्ती चउविधा, तं जहा-खंधा, खंधदेसा, खंधपएसा, परमाणुपोग्गला।
-सूय० अ ५ । चू० सू ६६ ३१.५ पूरण-गलन स्वभाव
अणूनां निरवयवत्वात् पूरणगलनक्रियाभावात् पुद्गलव्यपदेशाभावप्रस ग इति ; तन्न ; कि कारणम् ? गुणापेक्षया तत्सिद्धः। रूपरसगंधस्पर्शयुक्ता हि परमाणवः एकगुणरूपादिपरिणताः द्वित्रिचतुःसंख्येयाऽसंख्येयाऽनंतगुणत्वेन वर्धन्ते, तथैव हानिमपि उपयान्तीति गुणापेक्षया पूरणगलनक्रियोपपत्तेः परमाणुष्वपि पुद्गलत्वमविरूद्धम्। अथवा गुण उपचार कल्पनम् पूरणगलनयोः भावित्वात् भूतत्वाच्च शक्त्यपेक्षया परमाणुषु पुद्गलत्वोपचारः।
-राज० अ ५ । सू १ । पृ० ४३४ परमाणु पुद्गल शक्ति की अपेक्षा पूरण-गलन धर्मवाला है।
परमाणु पुद्गल में एक गुण, दो गुण, तीन गुण. चार गुण, ( पांच गुण, छह गुण, सात गुण, आठ गुण, नव गुण, दस गुण) सख्यातगुण, असंख्यातगुण तथा अनतगुण -रूप-गंध-रस-स्पर्श की हानि-वृद्धि होती रहती है अतः गुण की अपेक्षा परमाणु पुद्गल पूरण-गलन क्रियावाला है। .३१६ अनद्ध-अमध्य-अप्रदेशत्व
(क) परमाणुपोग्गले णं भंते ! कि सअड्ड, समझ, सपएसे ; उदाहु अणड्डे, अमझे, अपएसे ? गोयमा! अणड्ड, अमज्झे, अपएसे ; णो सअड्ड, णो समझे, णो सपएसे।
- भग० श ५ । उ ७ । सू ९ । प्र० ४८३
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