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जैन परिभाषानुसार अच्छेह्य, अग्राह्य, अग्राह्य और निविभागो पुदगल को परमाणु कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान के विद्यार्थी को परमाणु के उपलक्षणों में संदेह हो सकता है, कारण कि विज्ञान के सूक्ष्म यंत्रों में परमाणु की अविभाज्यता सुरक्षित नहीं है।
परमाणु के दो भेद हैं – (१) सूक्ष्म परमाणु व (२) व्यावहारिक परमाणु ।
सूक्ष्म परमाणु एक प्रदेशी है। व्यावहारिक परमाणु अनंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदय से बनता है।
यद्यपि संस्थान-परिमण्डल, वृत्त, व्यंश, चतुरस्र आदि सूक्ष्मता में भी होता है, फिर भी उसका गुण नहीं है ।
सूक्ष्म परमाणु द्रव्य रूप में निरवयव और अविभाज्य होते हुए भी पर्याय दृष्टि से वैसा नहीं है। उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श -ये चार गुण और अनंत पर्याय होते हैं। कहा है
परमाणो हि अप्रदेशो गीयते-द्रव्यरूपतया सांशो भवतीति, न तु कालभावाभ्यामपि 'अप्परासो दवट्टयाए' इति वचनात्, ततः कालभावाभ्यां सप्रदेशत्वेऽपि न कश्चिद्दोषः ।
-प्रज्ञा० पद ५ । टीका
अर्थात द्रव्य रूप से परमाणु अप्रदेशी है परन्तु काल तथा भाव की अपेक्षा सप्रदेशी भी है। पर्याय की दृष्टि से एक गुण वाला परमाणु अनंतगुणवाला हो सकता है और अनतगुणवाला परमाणु एक गुणवाला हो सकता है। एक परमाणु में वर्ण से वर्णान्तर, गन्ध से गन्धान्तर, रस से रसान्तर और स्पर्श से स्पर्शान्तर होना जैन दृष्टि से सम्मत है ।
__यह दृश्य जगत् पौद्गलिक जगत् परमाणुसंघटित है। परमाणुओं से स्कंध बनते हैं और स्कधों से स्थूलपदार्थ पुद्गल में सघातक और विघातक-ये दोनों शक्तियां पुद्गल शब्द में भी 'पूरण और गलन' इन दोनों शक्तियों का मेल है। परमाणु के मेल से स्कंध बनता है और एक स्कंध के टूटने से भी अनेक स्कंध बनते हैं। यह गलन और मिलन की प्रक्रिया स्वाभाविक भी होती है और प्राणी के प्रयोग से भी। क्योंकि पुद्गल की अवस्थाएं सादि-सांत होती है, अनादि-अनंत नहीं ।
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