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पुद्गल के दो प्रकार हैं -१-चतुस्पर्शी - इसमें द्रव्यमान नहीं होता। अष्टस्पर्शी - इसमें द्रव्यमान होता है। विज्ञान कोई भी पदार्थ द्रव्यमान रहित ( Innssless ) नहीं मानता।
अस्तु परमाणु द्विस्पर्शी होता है। इसकी गति तो प्रकाश से बहुत तेज होती है। जैन दर्शन के अनुसार अष्टस्पर्शी-चतुस्पर्शी में व चतुस्पर्शी अष्टस्पर्शी में परिवर्तित हो सकता है । इसका अर्थ यह हुआ कि नया द्रव्यमान पैदा हो रहा हैं।
षद्रव्यात्मक समूह को लोक कहा जाता है। छः द्रव्य है। उनके नाम व परिभाषा इस प्रकार है
१-धर्मास्तिकाय- जीव और पुद्गल के हलन-चलन में जो असाधारण रूप से सहायक हो-- वह धर्मास्तकाय है ।
२- अधर्मास्तिकाय-जीव और पुद्गल के स्थिर रहने में जो असाधारण रूप से सहायक हो-वह अधर्मास्तकाय है।
३-आकाशास्तिकाय--जो सब द्रव्य को आश्रय दे, वह आकाशास्तिकाय है ।
४-काल-जो पदार्थों के परिवर्तन का हेतु है, वह काल है ।
५ --पुदगलास्तिकाय --जो वर्ण, गन्ध. रस तथा स्पर्शयुक्त होता है-वह पृद्गलास्तिकाय है।
६ -जीवास्तिकाय --जो चैतन्य युक्त होता है-वह जीवास्तिकाय है।
अस्ति का अर्थ है-प्रदेश और काय का अर्थ है-समूह । प्रदेश और समूह को अस्ति काय कहते हैं। काल अप्रदेशी है, परमाणु भी अप्रदेशी है और अवशिष्ट पांच द्रव्य सप्रदेशी है। पुद्गलास्तिकाय —एक द्रव्य है
धम्मत्थिकायदव्वं १ दव्वमहम्मस्थिकायनामं २ च । आगास ३ काल ४ पोग्गल जीवदव्वस्सरूवं च ॥
-प्रवसा० द्वार १५२ । गा ९७३ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय तथा जीवास्तिकाय-ये छः द्रव्य हैं।
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