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अकिरिया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा - पगकिरिया, समुदाणकिरिया, अन्नाण
किरिया ।
अक्रिया के तीन भेद है—प्रयोग क्रिया, समुदान क्रिया और अज्ञान क्रिया ।
द्रव्य की अपेक्षा जीव तथा अजीव की परिस्पन्दन रूप क्रिया द्रव्य क्रिया है। द्रव्य क्रिया दो प्रकार की होती है - प्रायोगिक व वैस्रसिकी । वह चाहे उपयोगपूर्वक हो या अनुपयोगपूर्वक हो अथवा आंख की पलक झपकने मात्र जितनी हो वे सर्व द्रव्य क्रिया है । जिस क्रिया से कर्म बंध होता हो वह भाव क्रिया है ।
- ठाण० स्था ३ । उ ३ । सू १८७
हिंसा में मन, वचन व काययोग की प्रवृत्ति के बिना भी आत्मा के पाप कर्म का बंध होता है - यह कथन समुचित है । क्रिया है ।
प्रयोग और गति -
इसी प्रकार प्रत्याख्यान के अभाव में मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य का भी बंध होता है ।
अप्रतिहन- अप्रत्याख्यात अप्रत्याख्यान भी एक
गति का एक भेद
कति विहे णं भंते! गतिप्पवाए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-पओगगती १ ततगती २ बंधणच्छेयगती ३ उववायगती ४ विहायगती ५ । १०८५ । - पण्ण० प० १६
गति प्रपात के पांच भेद है, यथा, १ प्रयोगगति, २ ततगति, ३ बंधन छेदन गति, ४ उपपातगति और ५ विहायोगति ।
प्रयोगगति के भेद -
से कि तं पओगगती ? पओगगती पण्णरसविहा पण्णत्ता, तंजहा - सच्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगो भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगति । १०८६
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- पण्ण० प १६
प्रयोगगति के पन्द्रह भेद है, यथा - १ सत्यमनप्रयोगगति, २ मृषामन प्रयोगगति, ३ सत्यमृषामन प्रयोगगति, ४ असत्यमृषामनप्रयोगगति, ५-८ – इसी प्रकार वचन प्रयोग के चार भेद है । ९ औदारिकशरीरकाय प्रयोगगति, १० औदारिक- शरीर मिश्रकाय प्रयोगगति, ११ वैक्रिय - शरीरकाय प्रयोगगति, १२ वैक्रियशरीरमिश्रकाय प्रयोगगति, १३ आहारक शरीरकाय प्रयोगगति, १४ आहारक- शरीर मिश्रकाय प्रयोगगति और १५ कार्मणशरीरकाय प्रयोगगति ।
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