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जीव में कितनी प्रयोगगति
जीवाणं भंते ! कतिविहा पओगगति पण्णत्ता ? गोयमा ! पण्णरसविहा पण्णत्ता, तंजहा-सच्चमणप्पओगगति जाव कम्मासरीरकायप्पओगगति ।
-पण्ण पद १६ । सू १०८७ जीव में पंद्रह प्रकार की प्रयोगगति-यथा-सत्यमनप्रयोगगति यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति । नारकी यावत् वैमानिकदेव में कितनी प्रयोगगति--
णरइयाणं भंते ! कतिविहा पओगगति पण्णत्ता ? गोयमा ! एक्कारसविहा पण्णत्ता। तंजहा-सच्चमणप्पओगगति, एवं उवउज्जिऊण जस्स जइविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमाणियाणं । १०८८
-पण्ण पद १६ प्रयोगगति-प्रयोग-जीव व्यापार । प्रयोगरूपगति-प्रयोगगति । यहाँ देशान्तर प्राप्ति रूप गति समझनी चाहिए। क्योंकि जीव के द्वारा व्यावृत हुए सत्यमन आदि के पुद्गल अल्प अथवा अधिक देशान्तर तक गमन करते हैं ।
अस्तु नारकी के प्रयोगगति ग्यारह प्रकार की होती है—यथा-सत्यमनप्रयोगगति यावत् कार्मणकायप्रयोगगति ।
इसी प्रकार उपयोग-ध्यान देकर जिसके जितनी प्रकार को प्रयोगगति होती है उसके उतनी प्रयोगगति वैमानिकदेव तक कहनी चाहिए।
नोट-असुरकुमार से स्तनितकुमार तक नारकी की तरह प्रयोगगति ग्यारह प्रकार की होती है । पृथ्वीकाय से वनस्पतिकाय तक (वायुकाय बाद) तीन प्रयोगगति, वायुकाय में पांच प्रयोगगति, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय में चार प्रयोगगति, मनुष्य में पन्द्रह प्रयोगगति, तिर्यंच पंचेन्द्रिय में तेरह प्रयोगगति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी वैमानिक देवों में ग्यारह प्रयोगगति होती है। जीव दंडकों में प्रयोगगतिनारकी यावत् वैमानिक देवों में प्रयोगगति
जीवाणं भंते ! किं सच्चमणप्पओगगति जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगति ? गोयमा ! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगगति वि, एवं तं व पुव्ववणिय भाणियव्वं, भंगा तहेव जाव वेमाणियाणं । १०८९
-पण्ण पद १६ सर्व जीव सत्यमनप्रयोगवाले यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगवाले हैं। इसके सम्बन्ध में जैसा पूर्व में कहा है वैसा ही जानना चाहिए।
यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए ।
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