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( ३५० ) टीका--जोगो णाम कि ? मण-वयण-कायपोग्गलालंबणेण जीवपदेसाणं परिप्फंदो। जदि एवं तो पत्थि अजोगिणो, सरीरयस्स जीवदव्वस्स अकिरियत्तविरोहादो। ण एस दोसो।
-षट० २, १, १४, १५ । पु० ७ । पृ० १७ योग मार्गणानुसार मनयोगी, वचनयोगी और काययोगी बंधक है। अयोगी जीव अबंधक है।
मन, वचन और काय संबंधी पुद्गलों के आलम्बन से जो जीव प्रदेशों का परिस्पन्दन होता है वही योग है।
अध्ययन, गाथा, सूत्र आदि की संकेत सूची अध्ययन, अध्याय
प्राभृत अधिकार
प्रतिप्राभृत उद्देश, उद्देशक
भाष्य गाथा चरण
लाइन
वर्ग चलिका
वातिक टीका
वृत्ति
शतक द्वार
शीलांका
शीलांकाचार्य नियुक्ति
श्रुतस्कन्ध पद
श्लो
श्लोक पंक्ति
समवाय
प्रा
प्रपा
भाग
चूर्णी
दशा
सम
पृष्ठ
पैरा
स्था सिद्ध
स्थान सिद्धसेन हारीभद्रीय संधि
प्रश्न प्रकीर्णक प्रतिपत्ति
प्रकी
हा
संधि
प्रति
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संकलन सम्पादन अनुसंधान में प्रमुख ग्रन्थों की सूची १ से ४ अंगसूत्ताणि
आयारो-सूयगडो-ठाणं-समबाओ
वाचना प्रमुख-आचार्य (वर्तमान नाम-गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी) संपादकमनि नथमल (वर्तमान नाम-आचार्य श्री महाप्रज्ञ)। प्रकाशक-जैन विश्वभारती, लाडणू।
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