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________________ ( ३४९ ) नोट - हमारे विचार में इसका एक यह समाधान भी हो सकता है कि लेश्या परिणामों की अपेक्षा अलग से वेदनीय कर्म का बंधन होता है तथा योग की अपेक्षा अलग से वेदनीय कर्म का बंधन होता । तब तेरहवें गुणस्थान में कोई एक जीव ऐसा हो सकता है जिसके लेश्या की अपेक्षा वेदनीय कर्म का बंधन रूक जाता है लेकिन योग की अपेक्षा चालू रहता है । • ४९ योग और लेश्या लेसा तिनि पमत्तं, तेऊपम्हा उ अप्पमत्तंता । सुक्का जाव सजोगी, निरुद्धलेसो अजोगित्ति ॥ योग रहित जीव अलेशी है, सयोगी गुणस्थान में केवल शुक्ल लेश्या है । छसु सव्वा तेउतिगं, इगि छसु सुक्का अजोगिअलेस्सा । - चतुर्थ कर्म० गा ५० | पूर्वार्ध अहक्खाय सुहुम केवलदुगि सुक्का छावि सेसठाणेसु । - जिनवल्लभीय षडशीति गा ७३ टोका-यथाख्यातसंयमे सूक्ष्मसंपरायसंयमे च 'केवलद्विके' केवलज्ञानकेवलदर्शनरूपे शुक्ललेश्यैव न शेषलेश्या:, यथाख्यातसंयमादी एकांतविशुद्धपरिणामभावात् तस्य य शुक्ललेश्याऽविनाभूतत्वात् । 'शेषस्थानेषु' सुरगतौ x x x पंचेन्द्रियत्र स काययोगत्रय वेदत्रय x x x शेषमार्गणास्थानकेषु षडपिलेश्याः । - चतुर्थ कर्म० गा ३७ । पूर्वार्ध तीन योग - मन, वचन काययोग में कृष्णादि छओं लेश्या होती है । •५० योगस्थान और प्रकृति बंध और प्रदेश बंध प्रकृतिप्रदेशबन्धनिबन्धनयोगस्थानानां चतसृपि x x x - ५१ योग और बंधक - अबंधक प्रकृति बंध और प्रदेश बंध का कारण योगस्थान है । Jain Education International - गोक० गा० १२६ । टीका जोगाणुवादेण मणजोगि वचिजोगि. कायजोगिणी बंधा ॥ १४ ॥ टीका - एदं पि सुगमं । अजोगी अबंधा ॥१५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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