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अचरम सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी ज्योतिषी तथा वैमानिकदेव प्रथम दो भंग से पापकर्म बांधते हैं।
३९ सयोगी अचरम नारको यावत् वैमानिकदेव ( मनुष्य बाद देकर ) तथा
ज्ञानावरणीय कर्म का बंध सयोगी अचरम लारको यावत् वैमानिकदेव तथा दर्शनावरणीय कर्म का बंध सयोगी अचरम नारकी यावत् वैमानिकदेव तथा वेदनीय कर्म का बंध अचरिमे णं भंते ! णेरइए णाणावरणिज्ज कम्म कि बंधी-पुच्छा। गोयमा ! एवं जहेव पावं० x xx। दरिसणावरणिज्ज पि एवं चेव गिरवसेसं । वेयणिज्जे सव्वत्थ वि पढम-बिइया भंगा जाव वेमाणियाणं ।
-भग० श० २६ । उ ११ । सू ३ अचरम सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी नारकी आदि ज्ञानावरणीय कर्म का बंध पापकर्म बंध की तरह प्रथम-द्वितीय भंग से बंध करता है। मनुष्य को छोड़कर यावत् वैमानिक देवों तक इस प्रकार जानना चाहिए ।
इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म तथा वेदनीय कर्म के सम्बन्ध में जानना चाहिए। मनुष्य को बाद देकर सब दंडक कहना। सयोगी अचरम मनुष्य तथा ज्ञानावरणीय कर्म-बंध
" दर्शनावरणीय , "
वेदनीय ॥ अचरिमे णं मंते ! णेरइए णाणावरणिज्ज कम्म कि बंधी-पुच्छा।
गोयमा! एवं जहेव पावं। णवरं मणुस्सेसु सकसायीसु लोभकसायीसु य पढम-बिइया भंगा, सेसा अद्वारस चरमविहणा, सेसं तहेव जाव वेमाणियाणं।
दरिसणावरणिज्ज पि एवं चेव गिरवसेसं।
वेयणिज्जे सव्वत्थ वि पढम-बिइया भंगा जाव वेमाणिया, णवरं मणुस्सेसु अलेस्से, केवली अजोगी य पत्थि ।
'- भग० श०२६ । उ ११ । सू ३
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