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( ३४२ ) .३८ सयोगी अचरम नारकी आदि और पापकर्म का बंध
(क) अचरिमे णं भंते ! गैरइए पावकम्मं किं बंधी-पुच्छा।
गोयमा ! अत्यंगइए एवं जहेव पढमोद्देसए, पढमबिइया भंगा भाणियन्या सम्वत्थ जाव पाँचदियतिरिक्खजोणियाणं।
-भग० श. २६ । उ ११ । सू १ सयोगो-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी नारकी में पापकर्म-बंध की अपेक्षा प्रथमद्वितीय-दो भंग होते हैं।
___ इसी प्रकार असुरकुमार यावत् तिर्यंच पंचेन्द्रय जीवों तक के जीव पाप कर्म का बंधन प्रथम-द्वितीय भंग से करते हैं। सयोगी अचरम मनुष्य और पापकर्म-बंध
(ख) अचरिमे णं भंते ! मणुस्से पावं कम्मं कि बंधी-पुच्छा।
गोयमा। अत्थेगइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी बंधइ ण बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी ण बंधइ बंधिस्सइ।
xxx एवं जहेव पढमुद्देसे। गवरं जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिण्णि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से केवलणाणी य अजोगी य एए तिणि वि ण पुच्छिज्जति, सेसं तहेव ।
-भग• श० २६ । उ ११ । सू २, ३ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी-काययोगी (बीस पदों में है) मनुष्य के पापकर्म बंध में तीन भंग ( चतुर्थ भंग बाद देकर ) मिलते हैं।
अयोगी अचरम नहीं है अत: अयोगी अचरम मनुष्य का प्रश्न नहीं करना चाहिए।
(ग) सयोगी अचरम वाणव्यंतर देव तथा पापकर्म का बंध वाणमतर-जोइसिय-वेमाणिए जहा परइए।
-भग ० श० २६ । उ ११ । सू३ सयोगी अचरम मनोयोगी-वचनयोगी-कायोगी अचरम वाणव्यंतर प्रथम दो भंग से पापकर्म का बंध करते हैं।
(घ) सयोगी अचरम ज्योतिषी तथा पापकर्म-बंध (च) सयोगी अचरम वैमानिक तथा पापकर्म.बंध
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