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अस्तु — उनमें प्रथम समय के सोलह महायुग्मों के जीव केवल काययोगी होते हैं, बाकी सब मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं ।
अभवसिद्धियषडजुम्मकडजुम्मसणिपंचिदिया णं भंते! कओ उवव
ज्जति ?
उयवाओ
तहेव
सए । xxx । एवं सोलससु वि जुम्मेसु ।
- भग० श० ४० । श० १५ । सू १
अभवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव के विषय में कृष्ण लेशी शतक के अनुसार जानना । वे मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं । इस प्रकार सोलह महायुग्म को जानना ।
अणुत्तरविमाणवज्जो । x x x जहा
पढमसमयअभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसष्णिपंचिदिया णं मंते ! कओ उववज्जंति ? जहा सण्णिणं एकसमयउद्देसए तहेव । x x x । एवं एत्थ वि एक्कारस उद्देसगा कायव्वा xxx
भग० श ४० । श० १५ । सू २
प्रथम समय के अभवसिद्धिक कृतयुग्म - कृतयुग्म राशि संज्ञी पंचेन्द्रिय के विषय में प्रथम समय के संज्ञी उद्देशक के समान कहना । अस्तु वे मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं परन्तु काययोगी होते हैं । यहाँ भी ग्यारह उद्देशक है। बाकी सबके उद्दे शक में तीनो योग होते हैं ।
उववज्जं ति ?
कहना |
कण्हलेस अभवसिद्धिय - कडजुम्मकडजुम्मसणि-पंचिदिया णं भंते! कभ
कण्हलेस -
जहा एएस चेव ओहियसयं तहा कण्हलेस्ससयं विxxx
कृष्णलेशीअभवसिद्धिककृतयुग्म कृतयुग्म राशि संज्ञी
शतक की तरह कहना । प्रथम समय के काययोगी होते हैं, हैं। बाकी सब तीनो योगवाले होते हैं ।
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- भग० ४० । श० १६
पंचेन्द्रिय के विषय में औधिक मनोयोगी वचनयोगी नहीं होते
एवं छहि वि लेस्साहि छ सया कायव्वा जहा कण्हलेस सयं x x x
-भग० श० ४० । श० १७-२१
जिस प्रकार कृष्णलेश्या का शतक कहा उसी प्रकार छओं लेश्या का शतक
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