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( ३१५ ) .५५ सयोगी राशियुग्म जीव .५५.१ योग और कृतयुग्म-राशि
(राशिजुम्मकडजुम्मणेरइया ) ते णं भंते ! जीवा कहिं उववज्जति । गोयमा! से जहाणामए पवए पवमाणे-एवं जहा उववायसए जाव को परप्पओगेणं उववज्जति।
--भग० श.४१ । उ१। सू ८
कृतयुग्मराशि नारकी-जिस प्रकार कोई पुरुष कूदता हुआ अध्यवसाय निर्वर्तित क्रिया-साधन द्वारा उस स्थान को छोड़ कर भविष्यत् काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है उसी प्रकार नारकी आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं।
(राशिजुम्मकडजुम्मअसुरकुमारा) जहेव णेरइया तहेव गिरवसेसं । एवं नहा पंचिदियतिरिक्खजोणिया ।x x x मणुसा वि एवं चेव xxx। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा परइया।
-भग० श० ४१ । उ १ सू १४, २३
कृतयुग्म राशि असुरकुमार के विषय में नारकी के समान जानना चाहिए। यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक के विषय में ऐसा ही जानना चाहिए।
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकदेव का कथन भी नारकी के समान जानना चाहिए। .५५:२ सयोगी राशि युग्म जीव
( रासीजुम्मतेओयणेरइया) सेसं तं चेव जाव बेमाणिया। गवरं उववाओ सन्वेसि जहा वक्कतोए।
--भग• श. ४१ । उ २ ( रासीजुम्मदावरजुम्मणेरइया ) सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया।
-भग० श० ४१ । उ ३ ( रासीजुम्मकलिओगणेरइया ) सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया।
-भग० श० ४१ । उ ४ राशियुग्म में त्र्योज राशि नारकी यावत् वैमानिक देव प्रथम उद्देशक की तरह आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं परन्तु परप्रयोग से नहीं।
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