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( ३१३ ) इसी प्रकार कापोतलेश्या के विषय में भी शतक है । एवं तेउलेस्सेसु वि सयं।
-भग. श. ४० । श. ५
इसी प्रकार तेजोलेश्या में भी शतक हैं । जहा तेउलेस्सासयं तहा पम्हलेस्सासयं वि।
भग. श. ४० । श.६
तेजोलेश्या शतक के समान पद्मलेश्या का शतक है। सुक्कलेस्ससयं जहा ओहियसमं ।
-भग. श. ४० । श० ७
शुक्ललेश्या के शतक भी औधिक शतक के समान है।
भवसिद्धियक जुम्मकडजुम्मसणिचिविया x x x जहा पढम सण्णिसयं तहा णेयव्वं भवसिद्धियाभिलावेणं ।xxx।
-भग० श. ४० । श. ८ प्रथम संज्ञी शतक के अनुसार भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय के विषय में जानना। सोलह महायुग्मों के विषय में जानना चाहिए। सभी जीव मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं। लेकिन प्रथम समय के सभी महायुग्मों के जीव केवल काययोगी होते है।
( कण्हलेस्समवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिदिया) एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहियकण्हलेस्ससयं ।
एवं गोललेस्सभवसिद्धिए वि सयं ।
एवं जहा ओहियाणि सण्णिपंचिदियाणं सत्त सयाणि भणियाणि, एवं भवसिद्धिएहि वि सत्त सयाणि कायब्वाणि ।
-भग० श. ४० । श० ९ से १४ कृष्णलेशी-भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि-संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीव के विषय में कृष्णलेश्या वाले औधिक शतक के अनुसार कहना।
नौललेश्या वाले भवसिद्धिक शतक भी इसी प्रकार है।
अस्तु-संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सात औधिक शतक कहे हैं उसी प्रकार भवसिद्धिक जीवों के भी सात शतक कहने चाहिए।
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