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वचनयोगी व काययोगी होते हैं परन्तु मनोयोगी नहीं होते हैं । सोलह महायुग्म का इस प्रकार ही कहना ।
- ५४·४ सयोगी महायुग्म चतुरिन्द्रिय जीव
चरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायव्वा, नवरं ओगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । समयं, उक्कोसेणं छम्मासा । सेसं जहा बेइ दियाणं ।
ठिई जहणेणं एक्कं
- भग० श० ३८ । सू १
इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय के भी बारह शतक सोलह महायुग्म के साथ कहने चाहिए । द्वितीय शतक में काययोगी होते हैं, परन्तु मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं । ग्यारह शतकों में वचनयोगी व काययोगी होते हैं, परन्तु मनोयोगी नहीं होते हैं ।
• ५४. ५ सयोगी असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव
( कडजुम्मकडजुम्म असष्णिपंचिदिया ) जहा बेई दियाणं तहेव असण्णिसु वि बारस सया कायव्वा ।
- भग० श० उ ३९ । स १
कृतयुग्म - कृतयुग्मराशि असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के भी ( बेइन्द्रिय शतक के समान ) बारह शतक कहते । प्रथम समय कृतयुग्म कृतयुग्म असंज्ञी पंचेन्द्रिय में काययोग होता है, परन्तु वचनयोग- मनोयोग नहीं होते हैं । बाकी ग्यारह शतक में वचनयोगी- काययोगी होते हैं, परन्तु मनोयोगी नहीं होते हैं । सोलह महायुग्म कहने - बारह शतक सहित ।
नोट - असंज्ञी मनुष्य व असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय इन दोनों का असंज्ञी पंचेन्द्रिय में आविर्भाव है ।
- ५४.६ सयोगी महायुग्म संज्ञो पंचेन्द्रिय
कडजुम्मकडजुम्मसणिपंचिदिया णं भंते ! x x x मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी xxx एवं सोलसु वि जुम्मेसु भाणियव्वं ।
पढमसमय कडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिदिया णं बेदियाणं पढमसमइयाणं जाव अनंतक्खुत्तो x x x वयजोगी, कायजोगी ) x x x एवं सोलसु वि जुम्मेसु भाणियत्वं ।
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भंते ! x x x सेसं जहा
( णो मणजोगी, जो
एवं एत्थवि एक्कारस उद्देगा तहेव ।
- भग० श० ४० । श० १ सू २, ५, ६
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