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काल के भीतर कितनामात्र राशि का संचय प्राप्त होगा, इस प्रकार राशिक करके इच्छाराशि से प्रमाणराशि के भाजित करने पर वह जो संख्यात प्राप्त होगें उससे देव राशि के भाजित करने पर वहाँ तक भाग प्रमाण वैक्रियिकमिश्र काययोगी मिथ्याष्टियों का प्रमाण प्राप्त होगा।
नोट-उत्पत्ति को उपक्रमण कहते हैं और इस सहित काल को सोपक्रम-काल कहते हैं।
सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि वैक्रियिकमिश्र काययोगी जीव द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा ओघप्ररूपणा के समान है।
चूंकि सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयत सम्यगदष्टि तिर्यंच और मनुष्य देवों में उत्पन्न होते हुए पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण पाये जाते हैं। इसलिए इनके प्रमाण की प्ररूपणा ओघ अर्थात ओघप्ररूपणा के तुल्य होती है। यह इसका अभिप्राय है। अब इनके अवहारकाल की उत्पत्ति का कथन करते हैं, यथा-औदारिकमिश्र काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टियों के अवहारकाल को आवली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्र काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल होता है। असंयत सम्यग्दृष्टि
औदारिक काययोगियों के अवहारकाल को असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर वैक्रियिकमिश्र काययोगी असंयत सम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल होता है। क्योंकि तिर्यंचों के असंख्यातवें भाग प्रमाण राशि देवों में उत्पन्न होती है।
प्रश्न है-वैक्रियमिश्र काययोगी सासादन सम्यगदृष्टियों से औदारिकमिश्र काययोगी सासादन सम्यगदष्टि जीव असंख्यात किस कारण से है।
उत्तर-क्योंकि देवों में उत्पन्न होने वाले तिर्यंच सासादन सम्यगदृष्टियों से तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले देव सासादन सम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणे पाये जाते हैं । .०५ वैक्रिय काययोगो का द्रव्य प्रमाण .०६ वैक्रियमिश्र काययोगी का द्रव्य प्रमाण
वेउन्वियकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया?
-षट् ० खण्ड० २ । ५ । सू ९४ । पु ७ । पृष्ठ० २७९ टोका-सुगम।
देवाणं संखेज्जविभागूणो।
-षट् ० खण्ड ० २ । ५ । सू ९५ । पु ७ । पृष्ठ० २७९ टीका--देवेसु पंचमण-पंचवचि-वेउब्वियमिस्सकायजोगिरासिओ देवाणं संखेज्जदिभागमेत्ताओ देवरासीदो अवणिदे अवसेसं बेउन्वियकायजोगिपमाणं होदि।
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