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( २५३ )
असंखेज्जा।
-षट् खण्ड० २ । ५ । सू ८७ । पु ७ । पृष्ठ० २७७ टीका-एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो। कुदो ? उभयसत्तिसंजुत्तत्तादो। असंखेज्ज पि तिविहं । तत्थेदम्हि एदेसिमवट्ठाणमिदि जाणावगट्ठमुत्तरसुत्तं भणदिअसंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ।
.-षट्० खण्ड ० २ । ५ । मू ८८ । पु ७ । पृष्ठ० २७७ । ८ टीका-एदेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं जहण्णसंखेज्जासंखेज्जस य पडिसेहोकदो, एदेसु असंखेज्जासंखेज्जाणं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो। सेसदोअसंखेज्जासंखेज्जेसु एक्कस्सावहारण?मुत्तरसुत्तं भणदि
खेतेण वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीहि पदरमवहिरदि अंगुलस्स संखेज्जविभागवग्गपडिभाएण।
-पट० खण्ड० २ । ५ । सू ८९ । पु ७ । पृष्ठ० २७८ टोका-एदेण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो कदो, तस्स पदरस्स असंखेज्जविभागत्तविरोहादो। संखेज्जरूवेहि ओवट्टिदपदरंगुलेण जगपदरे भागे हिदे दो वि रासीओ आगच्छति । सेसं सुगमं ।
योगमार्गणानुसार पांच मनोयोगी और सत्य, असत्य व उभय- ये तीन वचनयोगी द्रव्यप्रमाण से देवों से संख्यातवें भाग प्रमाण है।
___ अस्तु दोसो छप्पन सूच्यंगुल्लों के वर्गरूप देवों के अवहारकाल को तत्प्रायोग्य संख्यात् रूपों से गुणित करने पर इनके अवहारकाल होते हैं। इनके जगप्रतर के भाजित करने पर पूर्वोक्त आठ राशियां होती है। शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
वचनयोगी और असत्यमृषा अर्थात् अनुभय वचनयोगी द्रव्य प्रमाण से असंख्यात है।
अस्तु इस सूत्र के द्वारा संख्यात व अनन्त का प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, वह सूत्र संख्यात व अनन्त के प्रतिषेध तथा असंख्यात के विधान रूप उभय शक्ति से संयुक्त है । असंख्यात के तीन प्रकार है। उनमें से इस असंख्यात में इनका अवस्थान है, इसके ज्ञापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं।
वचनयोगी और असत्यमृषा वचनयोगी काल की अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सपिणियों से अपहृत होते हैं।
अस्तु इस सूत्र के द्वारा परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और जघन्य असंख्यातासंख्यात का प्रतिषेध किया गया है ; क्योंकि इनमें असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सपिणियों का अभाव है। शेष दो असंख्यातासंख्यातों में से एक के अवधारणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं।
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