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क्षेत्र की अपेक्षा वचनयोगी और असत्यमृषा वचनयोगियों द्वारा सूच्यंगुल के संख्यातवें भाग वर्गरूप प्रतिभाग से जगप्रतर अपहृत होता है ।
अस्तु इस सूत्र के द्वारा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि उससे जगप्रतर के असंख्यातवें भागपने का विरोध है। संख्यातरूपों से अपवर्तित प्रतरांगुल का जगप्रतर में भाग देने पर दोनों ही राशियां आती है। शेष सूत्रार्थ सुगम है । ०३ काययोगी तथा औदारिक काययोगी का द्रव्य प्रमाणकायजोगि-ओरालियकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी मूलोघं ।
-षट्० खण्ड० १ । २। सू ११० । पु ३ । पृष्ठ० ३६५ टोका-एदे दो वि रासीओ अणंता। अणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण। खेत्तेण अणंताणंता लोगा इदि वुत्तं होदि। सेसं सुगमं । सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति जहा मणजोगिभंगो।
--षट् ० खण्ड ० १ । २ । सू १११ । पु ३ । पृष्ट० ३९५ टीका-एदं सुत्तं सुगम। एत्थ धुवरासिविहाणं वच्चदे। तं जहा. सगुणपडिवण्णमणजोगि-वचिजोगिरासि सिद्ध-अजोगिरासि च कायजोगिभजिदंएदेसि वगं च सव्वजीवरासिम्हि पक्खित्ते कायजोगिधुवरासि होदि। तं पडिरासि काऊण तत्थेक्करासिम्हि संखेज्जरवेहि भागे हिदे लद्धतम्हि चेव पक्खित्ते ओरालियकायजोगिधुवरासि होदि। सासणादीणं सग-सगअवहारकाले संखेज्जरवेहि खंडिय लद्धतम्हि चेव पक्खित्ते कायजोगिसासणादिगुणपडिवण्णाणं अवहारकाला भवंति। एदे अवहारकाले आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे ओरालियकायजोगिसासणादीणमवहारकाला भवंति । कुवो? तिरिक्ख-मणुस्सगुणपडिवण्णरासीणं देवगुणपडिवण्णरासिस्स असंखेज्जदिभागत्तादो। संजदासंजदाणं पुण कायजोगिअवहारकालो चेव ओरालियकायजोगिअवहारकालो होदि, तत्थ तव्वदिरित्तकायजोगाभावादो।
काययोगियों और औदारिककाययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव सामान्य प्ररूपणा के समान है।
उपयुक्त ये दोनों राशियां भी अनंत है। काल की अपेक्षा काययोगी और औदारिक काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव अनंतानंत अवसर्पिणियों और उत्सपिणियों के द्वारा अपहृत नहीं होते हैं और क्षेत्र की अपेक्षा अनंतानंत लोक-प्रमाण है। यह इस कथन का तात्पर्य है।
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