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( २३९ ) टोका-सुगम।
अणंतो भागो।
-षट् खण्ड० २ । १० । सू ३६ । पु ७ । पृष्ठ० ५०७ टीका--कुदो ? एदेहि सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूवोवलंभादो।
योगमार्गणा के अनुसार पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीव सर्व जीवों के अनन्तवें भाग प्रमाण है। क्योंकि इनका सर्वजीवराशि में भाग देने पर अनन्तरूप प्राप्त होते हैं। •०२ काययोगी का भागाभाग
कायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो?
-षट्० खण्ड० २ । १० । सू ३७ । पु ७ । पृष्ठ० ५०७ टीका-सुगम।
अणंता भागा।
-षट्० खण्ड ० २ । ११ । सू ३८ । पु ७ । पृष्ठ० ५०७ । ८ टोका-कुदो? अप्पिददव्ववदिरित्तसव्वदन्वेहि सव्वजीवरासिमवहिरिज्जमाणे लद्धअणंत्तसलागाओ विरलिय सव्वजीवरासि समखंडं करिय दिण्णे तत्थेगरूवधरिदं मोत्तूण सेसबहुभागेसु समुदिदेसु कायजोगिदत्वपमाणुवलंभादो।
काययोगी जीव सब जीवों के अनन्त बहुभाग प्रमाण है। क्योंकि विवक्षित द्रव्य से भिन्न सब द्रव्यों द्वारा सर्व राशि को अपहृत करने पर प्राप्त हुई अनन्त शलाकाओं का विरलन कर व सर्व जीव राशि को समखण्ड करके देने पर उसमें एक रूप धरित को छोड़कर शेष समुदित बहुभागों में काययोगी द्रव्य का प्रमाण पाया जाता है। ..३ औदारिक काययोगी का भागाभाग ओरालियकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ?
-षट्० खण्ड० २ । १० । सू ३९ । पु ७ । पृष्ठ० ५०८ टीका-सुगम।
संखेज्जा भागा।
-षट् खण्ड० २ । १० । सू ४० । पु ७ । पृष्ठ० ५०० टीका-कुदो ? अणप्पिदसव्वदव्वेण सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे संखेज्जरूवाणमुवलं भादो।
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