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वैयिक मिश्रका योगियों का अन्तर जघन्य एक समय होता है । क्योंकि, सब वैक्रियिक मिश्रकाययोगियों के पर्याप्तियों के पूर्ण कर लेने पर एक समय का अन्तर होकर द्वितीय समय में देवों व नारकियों में उत्पन्न होने पर वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों का अन्तर एक समय होता है ।
वैक्रियिकमिश्र काययोगियों का अन्तर उत्कृष्ट बारह मुहूर्त होता है । क्योंकि देव अथवा नारकियों न उत्पन्न होने वाले जीव यदि बहुत अधिक काल तक रहते हैं तो बारह मुहूर्त तक ही होते हैं ।
अस्तु - यह जिन भगवान के मुख से निकले हुए वचनों से जाना जाता है ।
-०७ आहारककाययोगी का काल का अन्तर
.०८ आहारकमिश्रकाययोगी का काल का अन्तर
आहारक कायजोगी आहार मिल्सकाय जोगी सु मत्त संजदाणमंतरं सु केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहणणं एगसमयं ।
- षट्० खण्ड ० १ । ६ । सू १७४ | पु ५ । पृष्ठ ० ९३
टीका - सुगममेदं ।
होदि ?
टीका - एदं पि सुगममेव ।
उक्कस्सेण वासपुधत्तं ।
- षट्० खण्ड ० १ । ६ । सू १७५ । पु ५ । पृष्ठ० ९३
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, निरंतरं ।
टीका - तम्हि जोग-गुणंतरग्गहणाभावा ।
-०७ आहारककाययोगी का अन्तरकाल -०८ आहारकमिश्रकाययोगी का अन्तरकाल
टीका - सुगमं ।
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- षट्० खण्ड ० १ । ६ । मू १७६ | पु ५ | पृष्ठ० ९३
आहारक कायजोगि आहारमिस्सकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो
- षट्० खण्ड ० २ । ९ । सू २७ । पु ७ । पृष्ठ० ४८५
जहणेण एगसमयं ।
- षट्० खण्ड ० २ । ९ । सू २८ । पु ७ । पृष्ठ० ४८६
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