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( २३३ ) टीका-कुदो ? आहार-आहारमिस्सजोगेहि विणा तिहुवणजीवाणमेगसमयमुवलंभादो।
उक्कस्सेण वासपुधत्तं ।
-षट् खण्ड ० २ । ९ । सू २९ । पु ७ । पृष्ठ० ४८६ टोका-कुदो ? दोहि वि जोगेहि विणा सव्वपमत्तसंजदाणं वासपुधत्तावट्ठाणसणादो।
आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों का अन्तर जघन्य एक समय होता है। क्योंकि, आहारक और आहारकमिश्रकाययोगियों के बिना तीनों लोकों के जीव एक समय पाये जाते हैं।
उपयुक्त जीवों का अन्तर उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व प्रमाण होता है। क्योंकि, उक्त दोनों ही योगों के बिना समस्त प्रमत्तसंयतों का वर्षपृथक्त्वकाल तक अवस्थान देखा जाता है ।
योग का अन्तरकाल
उवसम सुहृमाहारे बेगुम्वियमिस्सणर अपज्जते । सासणसम्मे मिस्से सांतरगा मग्गणाअट्ठ॥ सत्तविणा च्छम्मासा वासपुधत्तं च बारसमुहुत्ता। पल्लासंखं तिण्हं वरमवरं एगसमओ दु॥
-- गोजी० गा० १४३, १४४ टीका-- x x x तच्च उत्कृष्टेन औपशमिकसम्यगदृष्टीनां सप्त दीनानि । तदनन्तरं कश्चित्स्यादेवेत्यर्थः x x x आहारकतन्मिभकाययोगिना वर्षपृथक्त्वं । त्रिकादुपरि नवकादधः पृथक्त्वमित्यागमसंज्ञा। वैक्रियमिश्रकाययोगिणां द्वादशमुहुर्ताः। xxx । तासां जघन्येनान्तरं एकसमय एव ज्ञातव्यः ।
आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगवालों का उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। तीन से ऊपर और नौ से नीचे की संख्या को आगम में पृथक्त्व संज्ञा है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों का अन्तर बारह मुहूर्त है। इनका जघन्य अन्तर एक समय ही जानना चाहिए।
विशेष-सत्यादि चार मनोयोग और चार वचनयोग, वैक्रियकाययोग, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग व कार्मणकाययोग का अन्तर नहीं है ।
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