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( २२१ ) काययोग की स्थिति .३ औदारिककाययोग की स्थिति '४ औदारिकमिश्रकाययोग की स्थिति .९ कार्मणकाययोग की स्थिति
तद्यथा-योगकालः कार्मणस्य त्रिसमयाः । औदारिकमिश्रस्य अन्तर्मुहूर्तः । औदारिकस्य ततः संख्यातगुणः। मिलित्वा त्रिसमयाधिकसंख्यातगुणितान्तमुहूर्तः। x x x । प्रक्षेपयोगोद्धृतमिश्रपिण्डः प्रक्षपकानांगुणको भवेदिति ।
- गोजी० गा० ६७१ । टीका
१--कार्मणकाययोग का काल तीन समय है ।
२-औदारिकमिश्रकाययोग का काल अन्तमुहूर्त है ।
३-औदारिककाययोग का काल उससे संख्यातगुणा है। सब मिलाने पर तीन समय अधिक संख्यातगुणित अन्तर्मुहूर्तकाल होता है। करणसूत्र में कहा है-प्रक्षेप को मिलाकर मिले हुए पिंड से भाग देने पर जो प्रमाण आवे उसे प्रक्षेप से गुणा करने पर अपना-अपना प्रमाण होता है। सो उक्त तीनों योगों के कालों को मिलाने पर तीन समय अधिक संख्यात अन्तर्मुहूर्तकाल हुआ। काययोग की स्थिति तज्जोगो सामण्णंकालो संखाहदो तिजोगमिदं ।
-गोजी० गा० २६३ । पूर्वार्ध टीका-तेषां चतुर्णां वाग्योगकालानां योगः-युतिः सामान्यवाग्योगकालो भवति । x x x अस्मात् काययोगकालः संख्यातगुणः।
चारों वचनयोगों के काल का योग सामान्य वचनयोग का काल है। इससे संख्यातगुणा काययोग का काल है। .१० अयोगी जीव में सुगममजोगीणं।
-षट० खण्ड० १।१। पु २ | पृष्ठ • ६७२ अयोगी गुणस्थान योग रहित होता है ।
नोट-अयोगी-चौदहवें गुणस्थान की अपेक्षा पांच ह्रस्व अक्षर ( अ, इ, उ, ऋ, ल) मात्र स्थिति होती है।
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