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टीका- एत्थ आहारककायजोगीणं दुचरिमसमओ जाव आहारकायजोगपवेसस्स अंतरं करिय पुणो उवरिमसमए अण्णे जीवे पवेसियव्वा । एवं संखेज्जवारसलागासु उप्पण्णासु तदो णियमा अंतर होदि । एवं संखेज्जं तोमुहुत्तसमासोविअंतमुत्तमेत्तो चेव । कधं गव्वदे ? उक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो ति सुत्तवयणादो ।
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आहारक काययोगी जीव जघन्य से एक समय तक रहते हैं। क्योंकि मनोयोग और वचनयोग से आहारककाययोग को प्राप्त होकर व द्वितीय समय में मरण कर योगान्तर को प्राप्त होने पर एक समय काल पाया जाता है ।
आहारककाययोगी जीव उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं । यहाँ आहारककाययोगियों के द्विचरम समय तक आहारककाययोग में प्रवेश का अंतर करके पुनः उपरिम समय में अन्य जीवों का प्रवेश कराना चाहिए । इस प्रकार संख्यातवार शलाकाओं में उत्पन्न होने पर तत्पश्चात् नियम में अन्तर होता है । इस प्रकार संख्यात अन्तर्मुहूर्तों का जोड़ अन्तर्मुहूर्त मात्र ही होता है ।
.०८ आहारकमिश्रकाययोगी की कालस्थिति
आहार मस्कायजोगी केवचिरं कालादो होंति ।
टीका - सुगमं ।
- षट्० खण्ड० २ । ८ । सू २४ । पु ७ । पृष्ठ ० ४७१
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जहणेण अंतमुत्तं ।
- षट्० खण्ड० २ । ८ । सू २५ ॥ पु ७ । पृष्ठ ० ४७१
टीका - कुदो ? आहारमिस्सकायजोगचरस्स आहार मिस्सकायजोगं गंतूण सुट्ट. जहणेण कालेन पज्जत्तीओ समाणिदस्स जहण्णकालुवलं भादो ।
उक्कस्से अतोमुत्तं ।
- षट् ०
टीका - एत्थ वि पुव्वं व संखेज्जं तोमुहुत्ताणं संकलणा कायव्वा । आहारकमिश्र काययोगी जीव जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं ।
क्योंकि, आहारकमिश्रकाययोग में जाने वाले जीव के आहारक मिश्रकाययोग को प्राप्त होकर अतिशय जघन्यकाल से पर्याप्तियों को पूर्ण कर लेने पर जघन्यकाल पाया जाता है ।
० खण्ड ० २ । ८ । सू २६ । पु ७ । पृष्ठ ० ४७१
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