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१ २१३ ) टोका-सुगम।
जहण्णेण अंतोनुहुत्तं ।
-षट् खण्ड ० २ । ८ । सू १९ । पु ७ । पृष्ठ. ४६९ टोका-कुदो ? ओरालियकायजोगट्टिदतिरिक्ख-मणुस्साणं बे विग्गहे कादूण देवेसुप्पज्जिय सव्वजहण्णण कालेण पज्जत्तीओ समाणिय अंतोमुहुत्तमेत्तजहण्णकालुवलंभादो।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।
-षट• खण्ड० २ । ८ । सू २० । पु ७ । पृष्ठ० ४७० टोका- मणुसअपज्जत्ताणं जधा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो संताणकालो परूविदो तधा एत्थ वि परूबेदव्वो।
वैक्रियमिश्रकाययोगियों का काल जघन्य से अन्तमुहूर्त है।
अस्तु, क्योंकि औदारिककाययोग में स्थित तिर्यंच और मनुष्यों का दो विग्रह करके देवों में उत्पन्न होकर और सर्वजघन्यकाल से पर्याप्तियों को पूर्ण कर बहुत ही कम अन्तर्मुहूर्त मात्र जघन्यकाल पाया जाता है ।
वैक्रियमिश्रकाययोगियों का काल उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
अस्तु जिस प्रमाण मनुष्य अपर्याप्तों के पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र संतानकाल का निरूपण किया जा चुका है, उसी प्रकार यहाँ भी निरूपण करना चाहिए। .०७ आहारककाययोगी को कालस्थिति आहारककायजोगो केवचिरं कालादो होति ।
-षट् खण्ड० २ । ८ । सू २१ । पु ७ । पृष्ठ० ४७. टोका–सुगम ।
जहण्णेण एगसमयं ।
-षट्० खण्ड ० २ । ८ । सू २२ । पु ७ । पृष्ठ० ४७० टोका-कुदो ? मणजोग-वचिजोगेहितो आहारकायजोगं गंतूण बिदियसमए कालं करिय जोगंतरं गयस्स एगसमयकालुवलंभावो।
उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं। ---षट्० खण्ड० २।८ । सू २३ । पु ७ । पृष्ठ० ४७० 1 ७१
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