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नहीं हो तो अन्तमुहूर्तकाल तक और यदि व्याधात हो तो एक समय से लेकर यथासंभव अन्तर्मुहूर्तकाल पर्यन्त एक जीव की अपेक्षा होते हैं। नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल योग की काल स्थिति है। योग की कालस्थिति औदारिककाययोग को कालस्थिति औदारिकमिथकाययोग की कालस्थिति कार्मणकाययोग को कालस्थिति समयत्तयसंखावलिसंखगुणावलिसमासहिदरासी।
-गोजी० गा० २६५ । पूर्वाध कार्मणकाययोग का काल तीन समय होता है, क्योंकि विग्रहगति में अनाहारक तीन समयों में कार्मणकाययोग ही संभव है। औदारिकमिश्रकाययोग काल संख्यात आवलिमात्र होता है क्योंकि अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अपर्याप्तकाल ही औदारिकमिश्र का काल है । औदारिककाययोग का काल उससे संख्यातगुणा है क्योंकि उन दोनों कालों में से हीन सब काल ही औदारिककाययोग का काल है। .४० सयोगिजीव को सयोगीत्व की अपेक्षा स्थिति .०१ मनोयोगी और वचनयोगी को कालस्थिति .०२ काययोगी की कालस्थिति .०३ औदारिककाययोगो को कालस्थिति •०४ औदारिकमिश्रकाययोगी को कालस्थिति .०५ वैक्रियकाययोगी की कालस्थिति .०६ कार्मणकाययोगी को कालस्थिति
जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी कायजोगी ओरालियकायजोगी ओरालियमिस्सकायजोगी वेउम्वियकायजोगी कम्मइयकायजोगी केवचिरं कालादो होति।
-षट् खण्ड० २।८ । सू १६ । पु ७ । पृष्ठ• ४६८ टोका-सुगम।
सव्वद्धा।
-षट् खण्ड• २ । ८ । सू १७ । पु ७ । पृष्ठ• ४६८ । ९ टीका-मणजोगि-वचिजोगीणमद्धा जहण्णेण एगसमओ, उक्कसेण अंतोमुहत्तं । मणसअपज्जत्ताणं पुण जहणओ उक्कस्सओ अंतोमुहुत्तगेत्तो चेव । जवि
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