________________
( २१० ) टोका-कुदो? तिण्णि समइयं कंडयं काऊण संखेज्जकंडयाणमुवलंभा।
एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण तिण्णि समयं ।
--षट्० खण्ड० १ । ५ । सू २२६ । पु ४ । पृष्ठ० ४३६ । ७ टोका-कुदो? पदरादो लोगपूरणादो वा कवाडस्स गमणाभावा।
कामंणकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव-नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय होते हैं । २२० ।
अस्तु-जैसे-कोई सासादनसम्यगदृष्टि और असंयतसम्यगदष्टि जीव एक विग्रह करके उत्पन्न होने के प्रथम समय में एक समय कार्मणकाययोग के साथ पाया जाता है ।
उक्त जीवों का उत्कृष्टकाल आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । २२१ ।
जैसे पूर्व पर्याय को छोड़ने के पश्चात् कितने ही सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव बांधी हुई आयु के वश से उत्पन्न होकर विग्रहगति में दो विग्रह करके, दो समय रहकर, पुनः औदारिकमिश्रकाययोग को अथवा वैक्रियिकमिश्रकाययोग को प्राप्त हुए । उसी समय में ही दूसरे जीव भी कार्मणकाययोगी हुए। इस प्रकार इसे एक कांडक करके, इस प्रकार के अन्य-अन्य आवली के असंख्यातवें भाग मात्र कांडक होते हैं। इन कांड को भी शलाकाओं से दोनों समयों को गुणा करने पर आवली का असंख्यातवां भाग कार्मणकाययोग का उत्कृष्टकाल होता है । ( योगकालः ) कार्मणस्य त्रिसमयाः।
-गोजी० गा० ६७१ । टीका कार्मणयोग का काल तीन समय है। योग की स्थिति ___स कार्मणकाययोगः एकद्वित्रिसमयविशिष्टविग्रहगतिकालेषु केवलिसमुद्घातसम्बन्धिप्रतरद्वयलोकपूरणे समयनये च प्रवर्तते शेषकाले नास्तीति विभागः तु शब्देन सूच्यते ? अनेन शेषयोगानामव्याघातविषये अन्तमुहर्तकालो व्याघातविषये एकसमयादि यथासंभवान्तर्मुहूर्तपर्यन्तकालश्च एकजीवं प्रतिभणितो भवति । नानाजीवापेक्षया x x x सर्वकाल इति विशेषो ज्ञातव्यः।
-गोजी० गा० २४१ । टीका वह कार्मणकाययोग एक-दो या तीन समय वाली विग्रहगति के काल में और केवलिसमुद्घात संबंधी दो प्रतर और लोकपूरण के तीन समयों में होता है, शेषकाल में नहीं होता है। यह विभाग 'तु' शब्द से सूचित होता है। इससे शेष योग यदि कोई व्याघात
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org