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करते हैं ।
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fararaयोगी जीव समुद्घात की अपेक्षा लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श
अस्तु यहाँ पर क्षेत्र प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि वर्तमानकाल की प्रधानता है ।
उक्त जीव अतीतकाल की अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह और नेरह बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ।
अस्तु अतीतकाल की अपेक्षा वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैऋियिक - समुद्घात पदों से उक्त जीवों ने आठ बटे चौदह भागों का स्पर्श किया है । मारणान्तिकसमुद्घात 'से कुछ कम तेरह बटे चौदह भागों का स्पर्श किया है । क्योंकि, मेरुमूल से ऊपर सात और नीचे छह राजु आयामबाली लोकनाली से पूर्ण कर वैक्रियिककाययोग के साथ अतीतकाल में मारणान्तिकसमुद्घात को प्राप्त जीव पाये जाते हैं ।
वैकिकाययोगी जीवों में उपपादपद नहीं होता है ।
क्योंकि उपपादपद में वैक्रियिककाययोग का अभाव है ।
• ०६ वैक्रियमिश्र काययोगी का क्षेत्र - स्पर्श
वेव्वियमिस्तकायजोगी सत्याणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ?
टोका - सुगमं ।
- षट्० खण्ड० २ । ७ । सू ११८ | पु ७ । पृष्ठ० ४१७
लोगस्स असंखेज्जदिभागो ।
- षट्० खण्ड० २ । ७ । सू ११९ । पु ७ । पृष्ठ० ४१७
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टीका - एत्थ वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारवदिसत्थाणं णत्थि ।
समुग्धाद- उवावदं णत्थि ।
- षट्० खण्ड० २ । ७ । सू १२० । पु ७ । पृष्ठ० ४१७ । ८ टीका - हो णाम मारणंतिय उववादाणामभावो, एदेसि दोण्हं वेडब्बियमिस्सकायजोगेण सह विरोहादो । वेडव्वियस्स वि तत्थ अभावो होदु णाम, अपज्जत्तकाले तदसंभवादो। ण पुण वेयण-कसायाणं तत्थ असंभवो, णेरइएस अपज्जत्तकाले चेव ताणमुवलंभादो । एत्थ परिहारो बुच्चवे । तं जहा होदु णाम
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