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फोसिदो। विहारवदिसत्थाणेण अटुचोद्दसभागा फोसिदा, अट्ठरज्जुबाहल्ललोगणालीए वेउन्वियकायजोगेण देवाणं विहारुवलंभादो।
समुग्घादेण केवडियं खेत्तं फोसिदं ?
-षट० खण्ड ० २ । ७ । सू ११४ । पु ७ । पृष्ठ० ४१६ टोका-सुगमं।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो।
-षट्० खण्ड ० २ । ७ । सू ११५ । पु ७ । पृष्ठ० ४१६ टीका-एत्थ खेत्तवण्णणा, वट्टमाणप्पणादो।
अट्ठ-तेरह चोद्दसभागा देसूणा।
---षट्० खण्ड० २ । ७ । सू ११६ । पु । ७ पृष्ठ० ४१६ टीका- वेयण-कसाय-वेउवियपदेहि अटुचोद्दसभागा फोसिदा। मारणंतिएण तेरह चोद्दसभागा देसूणा फोसिदा। कुदो? मेरुमूलादो उवरि सत्त हेट्ठा छरज्जुआयामलोगणालिमावूरिय वेउब्वियकायजोगेण तौदे कयमारणंतिय जीवाणमुवलंभादो।
उववादं स्थि।
-षट् खण्ड० २ । ७ । सू १९७ । पु ७ । पृष्ठ• ४१६ वैक्रियिकाययोगी जीव स्वस्थान पदों से लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं।
अस्तु उक्त जीवों ने स्वस्थान पदों से तीन लोकों के असंख्यातवें भाग, तिर्यगलोक के संख्यातवें भाग, और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र का स्पर्श किया है। क्योंकि, वर्तमानकाल की प्रधानता है।
अतीतकाल की अपेक्षा वैक्रियिककाययोगी जीव कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं।
___ अस्तु वैक्रियिककाययोगी जीवों ने स्वस्थान पदों से अतीतकाल की अपेक्षा तीन लोकों के असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र को स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान की अपेक्षा आठ बटे चौदह भागों का स्पर्श किया है, क्योंकि आठ राजु बाहल्यवाली लोकनाली में वैक्रियिककाययोग से देवों का विहार पाया जाता है।
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