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उववादं णस्थि।
षट् खण्ड ० २ । ७ । सू ११० । पु ७ । पृष्ठ० ४१५ टोका-उववादकाले ओरालियकायजोगस्स अभावादो।
औदारिककाययोमी जीव स्वस्थान और समुद्घात की अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श करते हैं।
अस्तु स्वस्थान-स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदों से उक्त जीवों ने सर्वलोक स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान से वर्तमानकाल की अपेक्षा स्पर्शन का निरूपण क्षेत्र के समान है। अतीतकाल की अपेक्षा तीन लोकों का असंख्यातवां भाग, तियंग्लोक का संख्यातवां भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र का स्पर्श किया है। वैक्रियिकपद से वर्तमानकाल की प्ररूपणा क्षेत्र-प्ररूपणा के समान है। अतीतकाल की अपेक्षा तीनों लोकों के असंख्यातवें भाग तथा मनुष्यलोक व तिर्यमलोक से असंख्यातगुणे क्षेत्र का स्पर्श किया है।
इस सूत्र से देशामर्शक करके यह सब सूत्रविहित व्याख्यान करना चाहिए।
औदारिककाययोग में उपपाद नहीं होता है। क्योंकि उपपादकाल में औदारिककाययोग का अभाव रहता है। ..५ वैक्रिय काययोगी का क्षेत्र-स्पर्श वेउब्वियकायजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ?
-षट् खण्ड० २ । ७ । सू १११ । पु ७ । पृष्ठ० ४१५ टीका-सुगर्म।
लोगस्स असंखेज्जविभागो।
--षट् खण्ड• २ । ७ । सू ११२ । पु ७ । पृष्ठ० ४१५ टीका-एदस्स अत्थो-तिहं लोगाणमसंखेज्जविभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो कोसिदो। कुदो ? वट्टमाणप्पणादो।
अट्टचोद्दसभागा देसूणा।
-षट् खण्ड• २ । ७ । सू ११३ । पु ७ । पृष्ठ• ४१५ टीका उब्वियकायजोगीहि सत्थाणेहि तीदे काले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जविभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जविभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो
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