________________
( १६७ )
भागो | तेजाहारपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो, फोसिदो । एत्थ नासद्देण विणा कधमेसो अत्थो एत्थ वक्खाणिज्जदि ? ण एस दोसो, एस्स सुत्तस्स देसामासियत्तादो । विहारवदिसत्थाणवेउच्चिय-तेजा हारपदाणि ओरालियमिस्से णत्थि ।
काययोगी और औदारिकमिश्र काययोगी जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदों से सर्वलोक स्पर्श करते हैं ।
ब्याख्या—श्वस्थान-स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदों से वर्तमान और अतीतकालों में उक्त जीवों में सर्वलोक का स्पर्श किया है, क्योंकि उन जीवों के सर्वत्र गमनागमन और अवस्थान में कोई विरोध नहीं है । विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदों से वर्तमानकाल की अपेक्षा स्पर्शन का निरूपण क्षेत्र - प्ररूपणा के समान है । अतीतकाल की अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भागों का स्पर्श किया है । विशेष इतना है कि वैयिकपद को अपेक्षा तीन लोकों के संख्यातवें भाग का स्पर्श किया है ।
तेजस समुद्घात और आहारकसमुद्घात पदों में चार लोकों के असंख्यातवें भाग ब मानुषक्षेत्र के संख्यातवें भाग का स्पर्श किया है ।
विहारवत्स्वस्थान, वैक्रियिकसमुद्घात, तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घातपद औदारिकमिश्रयोग में नहीं होते हैं ।
- ०३ औदारिक काययोगी का क्षत्र- स्पर्श
ओरालिका जोगी सत्याण- समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिवं ?
टीका - सुगमं ।
- षट् ० ० खण्ड० २ । ७ । स १०८ । पु ७ । पृष्ठ ० ४१४
Jain Education International
सव्वलोगो ।
- षट् खण्ड ० २ । ७ । सूं १०९ । ७ । पृष्ठ० ४१४
टीका - सत्यासत्याण- वेयण कसाय मारणंतिएहि वट्टमाणातोदेसु सव्वलोगो फोसिदो विहारवदिसत्थाणेण वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण तिन्हं लोगाणम संखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो | वेउव्वियपदेण वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, पर- तिरियलोगेहितो असं खेज्जगुणो फोसिदो । एवं सुत्तं - देसामासिय सव्वमेदं वक्खाणं सुत्तारूढं कायव्वं ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org