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( १६६ )
विहारवत्स्वस्थान की अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि, मनोयोगी और वचनयोगी जीवों का विहार आठ राजु बाहल्ययुक्त लोकनाली में पाया जाता है ।
उपर्युक्त जीवों द्वारा समुद्घात की अपेक्षा लोक का असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है । ( १०३ )
अस्तु यहाँ क्षेत्र प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि वर्तमानकाल की प्रधानता है ।
अथवा उन्हीं जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग या सर्वलोक स्पृष्ट है । ( १०४ )
आहारकसमुद्घात और तैजससमुद्घात पदों को अपेक्षा चार लोकों का असंख्यातवां भाग और मनुष्य क्षेत्र का संख्यातवां भाग स्पृष्ट है । यह वा शब्द से सूचित अर्थ है । वेदना समुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदों से कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट है, क्योंकि आठ राजु आयत लोकनाली से सर्वत्र अतीतकाल की अपेक्षा वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्घात पाये जाते हैं । मारणान्तिकसमुद्घात की अपेक्षा सर्वलोक स्पृष्ट है ।
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवों के उपपादपद नहीं होता । (१०५)
क्योंकि, उपपादपद में मनोयोग-वचनयोग का अभाव है ।
- ०२ काययोगी का क्षेत्र - स्पर्श
• ०४ औदारिकमिश्र काययोगी का क्षेत्र-स्पर्श
कायजोगि ओरालियमस्सकायजोगी सत्याण समुग्धादउववादेहि के वडियं खेत्तं फोसिदं ।
टीका - सुगमं ।
- षट्० खण्ड ० २ । ७ । सू १०६ । पु ७ । पृष्ठ ० ४१३
सव्वलोगो ।
- षट्० खण्ड० २ । ७ । सू १०७ । पु ७ । पृष्ठ० ४१३ | ४
टीका- एक्स्स अत्थो - सत्याण- वेयण- कसाय मारणंतिय उववादेहि वट्टमाणादीदेसु सव्वलोगो फोसिदो । कुदो ? सव्वत्थ गमणागमणावद्वाणं पडि विरोहाभावादो | बिहारबदिसत्याण - वेडब्बियपदेहि वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण अचोभागा देणा फोसिदा । णवरि वेडव्वियपदेण तिष्हं लोगाणं संखेज्जदि
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