________________
( १५९ )
अट्ठ चोहसभागा फोसिदा । उववादो णत्थि । मारणंतियपरिणदेहि बारह चोद्दसभागा फोसिदा । तेणोघमिदि जुज्जदे ।
सम्मामिच्छादिट्टी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ।
- ष० खण्ड० १ । ४ । सु ९३ । पु ४ | पृष्ठ० २६७
टीका - जेणदेसि वट्टमाणपरूवणा खेतोघपरूवणाए तुल्ला, तेणोघं होदि । अदोदपरूवणा वि फोसणोघेण तुल्ला । तं जहा - सत्याणसत्याणपरिणदेहि तिह लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असं खेज्जगुणो फोसिदो । विहारव दिसत्थाय वेदण-कसाथ वे उब्विय- मारणं तियपरिणदेहि अट्ठ चोसभामा देसूणा फोसिदा । असंजदसम्मादिट्ठिस्स उववादो णत्थि । सम्मामिच्छादिट्टिस्स मारणं तिय-उववादो गत्थि । तेणेत्थ वि ओघत्तमेदेसि जुज्जदे ।
वैकि काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीवों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श क्रिया है ।
चूंकि यह सूत्र वर्तमान काल में संबद्ध है । अतः इसकी व्याख्या करने पर जिस प्रकार से क्षेत्रानुयोगद्वार में वैक्रियिककाययोगी मिथ्यादृष्टि आदि जीवों के प्रतिबद्ध सूत्र का व्याख्यान किया है, उसी प्रकार यहाँ पर भी करना चाहिए ।
वैकि काययोगी मिथ्यादृष्टि जीवों ने तीनों कालों की अपेक्षा कुछ कम आठ बढे चौदह और कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ।
स्वस्थान- स्वस्थानपदपरिणत वैक्रियिक काययोगी मिथ्यादृष्टि जीवों ने सामान्य लोकादि तीन लोकों का असंख्यातवां भाग तिर्यग् लोक का संख्यातवां भाग और मनुष्य लोक से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और afafe समुदघातपदपरिणत उक्त जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं । यहाँ पर उपपाद पद नहीं होता है । ( क्योंकि मिश्रयोग और कार्मण काययोग के सिवाय अन्य योगों के साथ उपपाद पद का सहानवस्थान लक्षण विरोध है ) मारणान्तिक समुद्घातपदपरिणत उक्त जीवों ने ( कुछ कम ) तेरह बटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं, जो कि मेरुतल से नीचे छह राजु और सात राजु जानना चाहिए। घनाकार लोक को एक रूप के आठ बटे तेरह ( 3 ) भाग से कम ससाइस ( २६१ ) रूपों से खंडित (विभक्त ) करने पर एक खंड प्रमाण क्षेत्र का स्पर्श करते हैं, ऐसा अर्थ कहा गया समझना चाहिए ।
Jain Education International
वैrियिक काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों का स्पर्शन-क्षेत्र भोघ स्पर्शन के समान है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org