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इस सूत्र की वर्तमानस्पर्शनप्ररूपणा के समान है। स्वस्थान-स्वस्थान पदपरिणत वैक्रियिक काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों ने सामान्य लोकादि तीन लोकों का असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवां भाग और अढाई द्वीप से असंख्यात गुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यहाँ पर तिर्यग्लोक के संख्यातवें भागप्ररूपणा पूर्व के समान ही करना चाहिए। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घात- इन पदों से परिणत वैक्रियिक काययोगी जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं। इनके उपपाद नहीं होता है। मारणान्तिक समुद्घात पद से परिणत उक्त जीवों ने बारह बटे चौदह (११) भाग स्पर्श किये हैं। अतः सूत्र में दिया गया 'ओघ' पद युक्ति संगत है ।
वैक्रिय काययोगी सम्यमिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों का स्पर्शन ओघ के समान है।
चंकि इन दोनों गुणस्थानवी जीवों की वर्तमानकालिक स्पर्शन-प्ररूपणा क्षेत्र संबंधी ओघ प्ररूपणा के तुल्य है, अतः उनकी स्पर्श न-प्ररूपणा ओघ के तुल्य होती है । अतीतकालिक स्पर्शन-प्ररूपणा भी ओघ-प्ररूपणा के समान है। वह इस प्रकार से हैंस्वस्थान-स्वस्थान पद-परिणत वैक्रियिक काययोगी सम्यगमिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यगमिथ्यादृष्टि जीवों ने सामान्य लोकादि तीन लोकों का असंख्यात वां भाग, तिर्यगलोक का संख्यातवां भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पद परिणत उक्त जीवों ने कुछ कम आठ बटे चौदह (२१) भाग स्पर्श किये हैं। वैक्रियिक काययोगी असंयत सम्यगदृष्टि जीवों के उपपाद पद नहीं होता है। वैक्रियिक काययोगी सम्यगमिथ्यदृष्टि जीवों के मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद-ये दो पद नहीं होते हैं। अतः यहाँ पर भी ओघपना बन जाता है। •०६ वैक्रियमिश्र काययोगी की क्षेत्र-स्पर्शना
वेउवियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिदि-सासणसम्मादिदि-असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो।
-षट्० 'खण्ड ० १ । ४ । सू ९४ । पु ४ । पृष्ठ० २६८ टीका-एदस्स सुत्तस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगो। सत्थाणसत्थाण-वेदणकसाय-उववादपरिणदवेउव्वियमिस्सकायजोगिमिच्छादिट्ठीहि अदीदकाले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। विहारवदिसत्थाण-वेउव्वियमारणंतियपवाणि णत्थि। सासणसम्मादिहिस्स वि एवं चेव वत्तव्वं, वाणवेंतरजोदिसियदेवाणमसंखेज्जावासेसु तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमोडहिय हिदे सासणाणमुप्पत्तिदंसणादो असंजद
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