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( १५४ ) औदारिक काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है।
अस्तु इस वर्तमानकाल संबंधी सूत्र की क्षेत्रानुयोग द्वार में कहे गये औदारिक काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टियों की क्षेत्र-प्ररूपणा करनेवाले सूत्र के समान स्पर्शनप्ररूपणा करनी चाहिए।
उक्त जीवों ने अतीत और अनागत काल की अपेक्षा कुछ कम सात बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं।
स्वस्थान-स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदपरिणत सासादन सम्यग्दृष्टियों ने सामान्य लोकादि तीन लोकों का असंख्यातवां भाग, तिर्यगलोक का संख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। इन जीवों के उपपाद पद नहीं होता है। मारणान्तिक-पद-परिणत उक्त जीवों ने कुछ कम सात बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं।
ईषत्प्रागभार पृथ्वी के उपरिमभाग के बाहल्य-प्रमाण से कुछ कम क्षेत्र समझना चाहिए।
जीवों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श
औदारिककाययोगी : किया है।
अस्तु इस क्षेत्र की प्ररूपणा क्षेत्रानुयोगद्वार में वणित औदारिककाययोगी, सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के क्षेत्र का वर्णन करनेवाले सूत्र की प्ररुपणा के तुल्य है। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक पदपरिणत औदारिक काययोगी सम्यमिथ्यादृष्टि जीवों ने अतीत और अनागत काल में सामान्य लोकादि तीन लोकों का असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवां भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। औदारिक काययोगी सम्यगमिथ्यादृष्टि के मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद-ये दो पद नहीं होते हैं ।
औदारिक काययोगी, असंयत सम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है।
अस्तु स्वस्थान-स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घात इन पदों से परिणत औदारिक काययोगी असंयत सम्यग्दृष्टि और संयतासंयत ने सामान्य लोकादि तीन लोकों का असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवां भाग और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यह 'वा' शब्द से सूचित अर्थ है। मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पद परिणत उक्त जीवों ने कुछ कम छह बटे चौदह (8) भाग
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