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( १४३ ) सत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादगदा ओरालियमिस्सकायजोगिमिच्छाइट्ठी सव्वलोगे। विहारवदिसत्थाण-वेउब्वियसमुग्घादा गत्थि, तेण तेसि विरोहादो। ओरालियमिस्सस्स वेउव्वियादिपदेहि भेदसंभवादो ओघणिडेसो ण घडदे ? ण एस दोसो, एत्थ विज्जमाणपदाणं परूवणा ओघपरूवणाए तुल्लेत्ति ओघत्तविरोधाभावादो।
सासणसम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी अजोगिकेवली केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे।
-षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ३६ 1 पु ४ । पृष्ठ० १०६ टीका-एत्थ पुवसुत्तादो ओरालियमिस्सकायजोगो अणुघट्टदे। तेणेवं संबंधो भवदि-ओरालियमिस्सकायजोगीसु सासणसम्मादिट्ठी असंजदसम्माट्ठिी सजोगिकेतली केवडि खेत्ते इदि । सासणम्मादिदी-सत्थाण-वेदण-कसायसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे। कुदो ? ओरालियमिस्सम्हि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तसासणसम्मादिहिरासिस्स संभवादो। एत्थ सेसपदाणि णत्थि, तेण तेसि तत्थ विरोधादो। असंजदसम्माइट्ठीसत्थाण-वेदण-कसायसमुग्घादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे, संखेज्जपरिमाणादो। सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणमुववादो। किमण उत्तो ? ण, ओरालियमिस्सम्हि टिदाणमोरालियमिस्सकायजोगेसु उववादाभावादो। अधवा उववादो अत्थि, गुणेण सह अक्कमेण उपात्तभवसरीर पढमसमए उवलंभादो, पंचावत्थावदिरित्तओरालियमिस्सजीवाणमभावादो च। सजोगिकेवली कवाडगदो तिण्हं लोयाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जमुणे।
औदारिकमिश्र काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीव ओघ के समान सर्वलोक में रहते हैं ॥३५॥
___ अस्तु संख्या की अपेक्षा बहुत से भी जीवों के जाति-विवक्षा से एकत्व पाया जाता है । आदि, मध्य और अंत के वर्ण और स्वर का लोप हो जाता है।
स्वस्थान-स्वस्थान, वेदना समुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपादगत औदारिकमिश्र-काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव सर्वलोक में रहते हैं। यहाँ पर विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियसमुद्घात-ये दो पद नहीं होते हैं क्योंकि, औदारिकमिश्र काययोग के साथ इन दोनों का विरोध है।
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