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अस्तु यहाँ औदारिकमिश्र-काययोग में विद्यमान स्वस्थान आदि पदों की प्ररूपणा बोध प्ररूपणा के तुल्य है अतः ओघपना विरोध को प्राप्त नहीं होता है।
औदारिकमिश्र-काययोगी सासादन-सम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दष्टि और सयोगी केवली लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं।
इस सूत्र में पूर्व सूत्र से 'औदारिकमिश्र काययोग' इस पद की अनुवृत्ति होती है। अतः सूत्र के अर्थ का इस प्रकार संबंध होता है। औदारिकमिश्र काययोगियों में सासादन सम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगी-केवली कितने क्षेत्र में रहते हैं। स्वस्थानस्वस्थान, वेदना समुद्घात और कषायसमुद्घात सासादन सम्यग्दृष्टि जीव सामान्य लोकादि चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । क्योंकि औदारिकमिश्रकाय में पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण सासादन सम्यग्दृष्टियों की राशि का पाया जाना संभव है। यहाँ पर शेष विहारवत्स्वस्थानादि पद नहीं होते हैं। क्योंकि सासादन गुणस्थान के साथ उन पदों का यहाँ पर विरोध है।
स्वस्थान-स्वस्थान, वेदना समुदघात और कषायस मुद्घात औदारिकमिश्र-काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव सामान्य लोकादि चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और मनुष्य क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं क्योंकि वे संख्यात राशि-प्रमाण होते हैं।
औदारिकमिश्र-काययोगी सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों के उपपाद नहीं होता है। क्योंकि, औदारिकमिश्र काययोग में स्थित जीवों का पुनः औदारिकमिश्रकाययोगियों में उपपाद नहीं होता है। अथवा उपपाद होता है, क्योंकि सासादन और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान के साथ अक्रम से उपपात भव शरीर के प्रथम समय में उसका सद्भाव पाया जाता है। दूसरी बात यह है कि स्वस्थान-स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, केवलिसमुद्घात और उपपाद-इन पांच अवस्थाओं के अतिरिक्त औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों का सद्भाव है।
कपाट समुद्घात, औदारिकमिश्र-काययोगी, सयोगिकेवली भगवान् सामान्यलोक आदि तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। .०५ वैक्रियकाययोगी का अवस्थान
___ वेउब्वियकायजोगीसु मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जविभागे।
-षट्० खण्ड० १ । ३ । सू ३७ । पु ४ । पृष्ठ• १०८ टीका-एदस्सत्थो-सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाणवेदण-कसाय-वेउब्वियसमुग्धादगदा मिच्छादिट्ठी तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स
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