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काययोगियों में मिथ्यादृष्टि जीवों का क्षेत्र ओघ के समान सर्वलोक है।
अस्तु स्वस्थान-स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपादगत काययोगी मिथ्यादृष्टि जीव सर्वलोक में रहते हैं। विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घातगत काययोगी मिथ्यादृष्टिजीव सामान्यलोक आदि तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । यहाँ पर अपवर्तना जानकरके करना चाहिए।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती काययोगी जीव लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं।
योगाभाव होने से इस सूत्र में अयोगिकेवलियों का ग्रहण नहीं किया गया है। शेष सूत्र का अर्थ सुगम है।
काययोगवाले सयोगिकेवली का क्षेत्र ओघ सयोगिकेवली के क्षेत्र के समान है।
अस्तु सयोगिकेवली.-क्षेत्र में सयोगिकेवली लोक के असंख्यात बहुभागों में और सर्वलोक में रहते हैं। •०३ औदारिक काययोगी का अवस्थान
ओरालियकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं।
-षट् खण्ड० १ । ३ । सू ३३ । पु ४ पृष्ठ० १०४ टोका-एदे सत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतियसमुग्धादगदा सव्वलोए, सुहुमपज्जताणं सव्वलोगखेत्तेसु संभवादो। उववादो णत्थि, णिरुद्धोरालियकायजोगादो। विहारवदिसत्थाणगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, तसपज्जत्तरासिस्स संखेज्जविभागस्स संचारे होदि त्ति गुरुवएसादो। अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे। घेउव्वियसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे, ओरालियकायजोगे णिरुद्ध बेउन्वियकायजोगिसहगदवेउब्वियसमुग्घादस्स असंभवादो। सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवली लोगस्स असंखेज्जदिभागे।
-षट् खण्ड ० १ । ३। सू ३४ । पु ४ । पृष्ठ० १०५ टीका-कधं सजोगिकेवली लोगस्स असंखेज्जदिभागे? ण एस दोसो, ओरालियकायजोगे णिरुद्ध ओरालियमिस्स-कम्मइयकायजोगसहगदकवाड-पदरलोग-पूरणाणमसंभवादो। सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्माविट्ठीणमुववादो पत्थि । पमत्ते आहारसमुग्धादो पत्थि । सेसं जाणिय वत्तव्यं ।
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