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प्रश्न है कि वैक्रियिकसमुद्घात को प्राप्त जीवों के मनोयोग और वचनयोग कैसे संभव है ।
उत्तर - नहीं, क्योंकि, निष्पन्न हुआ है, विक्रियात्मक उत्तर शरीर जिनके, ऐसे जीवों के मनोयोग और वचनयोगों का परिवर्तन संभव है ।
मारणान्तिक समुद्घात गत पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी मिध्यादृष्टि जीव सामान्य लोक आदि तीनों लोकों के असंख्यातवें भाग में, मनुष्यलोक और तिर्यग्लोक के असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं ।
प्रश्न है कि मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त, असंख्यातयोजन आयाम से स्थित और मुच्छित हुए संज्ञी जीवों के मनोयोग और वचनयोग कैसे संभव हैं ।
उत्तर— नहीं, क्योंकि बाधक कारण के अभाव होने से निर्भर ( भरपूर ) सोते हुए जीवों के समान अव्यक्त मनोयोग और वचनयोग मारणान्तिक समुद्घात गत मुच्छित अवस्था में भी संभव है, इसमें कोई विरोध नहीं है ।
• ०२ काययोगी का अवस्थान
कायजोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं ।
- षट्० खण्ड० १ । ३ । सू ३० । पु ४ । पृष्ठ० १०३
टीका - सत्याणसत्थाण- वेदण-कसाय- मारणंतिय उववाद- गदा कायजोगिमिच्छाइट्ठी सव्वलोए । विहारवदिसत्थाण वेउव्वियसमुग्धादगदा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एत्थ ओवट्टणा जाणिय कायव्वा ।
सासणसम्मादिद्विप्पहूडि जाव खोणकसायवीदरागछदुमत्था केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।
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- षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ३१ । पु ४ । पृष्ठ० १०३
टीका - जोगाभावादो एत्थ अजोगीणमग्गहणं । सेसं सुगमं ।
सजोगिकेवली ओघं ।
- षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ३२ । पु ४ । पृष्ठ० १०४
टीका- गुणपडवण्णाणमेगजोगो किण्ण कदो ? ण, सजोगिम्हि लोगस्स असं खेज्जेसु भागेसु सव्वलोगे वा इदि विसेसुवलंभादो ।
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