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• १२ सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण सुहुमेइ दियपज्जत्तयस्स उवकस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो । टोका - को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ सू १५६ । पु० १० । पृष्ठ० ३९९ उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक का उत्पृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
- १३ बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण बादरेइ दियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो । टीकर - को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
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- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ १५७ । पु० १० | पृष्ठ० ३९९-४०० उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ।
गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
• १४ द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
बोइ दियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असं खेज्जगुणो ।
टोका–को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एत्थ बोइंदियअपज्जत्ता लद्धिणिव्वत्तिअपज्जत्तभेएण दुविहा । तत्थ कस्सउक्कस्सजोगो घेप्पदे ? व्वित्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगो घेत्तव्वो । कुदो ? बीई दियलद्धि अपज्जत्तउष कस्सपरिणामजोगादो वि बीइ दियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएगंताष्णुर्वा द्विजोगस्स जहष्णुक्कस्सवीणाबलेण असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो । उवरिमेसु विणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएयंता णुवड्डिजोगो चेव घेत्तव्वो । - षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १५८ । पु० १० पृष्ठ० ४००
उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ।
गुणकार पत्योपम का असंख्यातवां भाग है । यहाँ द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक लब्ध्यपर्याप्तक और निर्वृ स्यपर्याप्तक के भेद से दो प्रकार हैं । उनमें से निवृत्त्यपर्याप्तक के उत्कृष्ट एकतामुवृद्धि योग को ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के उत्कृष्ट परिणामयोग से भी द्वीन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्तक का उत्कृष्ट एकांतानुवृद्धि योग जघन्योत्कृष्ट चणा के बल से असंख्यातगुणा पाया जाता है ।
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