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आगे के सूत्रों में भी जहाँ अपर्याप्तक पद आया है वहाँ निर्वृत्त्यपर्याप्तक के उत्कृष्ट एकांतानुवृद्धियोग को ही ग्रहण करना चाहिए ।
- १५ त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
तीइ दियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सजोगो असंखेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १५९ । पु० १० । पृष्ठ ० ४०० उससे त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
• १६ चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण चदुरिदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सजोगो असंखेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं सुगमं ।
- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६० । पु० १० । पृष्ठ ० ४०० उससे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
-१७ असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
असण्णिपचदिय अपज्जतयस्स उक्कस्सजोगो असं खेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असं खेज्जदिभागो । कारणं सुगमं ।
- षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६१ । पु० १० पृष्ठ ० ४० १ उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
• १८ संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण सणिचिदिय अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ टीका- गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६२ । पु० १० । पृष्ठ० ४० १ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
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