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०६ असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण असणि चिदिय अपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असं खेज्जगुणो ॥
टीका - को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
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- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १५० । पु० १० । पृष्ठ ३९८ उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
•०७ संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण सपिचिदिय अपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असं खेज्जगुणो । टीका -- को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १५१ । पु० १० । पृष्ठ० ३९८ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
०८ सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण सुहमेइ दिय अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ।
टीकाको गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एत्थ सुहुमेइ - दियअपज्जत्ता दुबिहा लडिअपज्जत्त- णिव्वत्तिअपज्जत्तभेएण । तत्थ के सिमपज्जताणमुक्कस्सजोगो घेप्पदे ? सुहुमेइ दियलद्धि अपज्जत्ताणमुक्कस्सपरिणामजोगो घेत्तव्वो । कुदो ? णिव्वत्ति अपज्जताणमुक्कस्सजोगो णाम उक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगो, तत्तो एक्स्स उक्कस्सपरिणामजोगस्स असंखेज्जगुणत्तदंसणादो । कुदो णव्वदे ? जहण्णुक्कस्सवीणादो ।
- षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १५२ । पु० १० । पृष्ठ० ३९६ उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ।
गुणकार पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
यहाँ लब्ध्यपर्याप्त और निर्वृत्त्यपर्याप्तक के भेद से सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के दो प्रकार हैं । यहाँ सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकों के उत्कृष्ट परिणामयोग को यहाँ ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि निर्वृत्त्यपर्याप्तकों के उत्कृष्ट योग जो उत्कृष्ट एकांतानुवृद्धियोग है उससे इसका उत्कृष्ट परिणाम योग असंख्यातगुणा देखा जाता है ।
यह जघन्योत्कृष्ट वीणा से जाना जाता है ।
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