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उपपाद योग से अधस्तन सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के उपपाद योग-स्थानों में असंख्यात योगगुणहानियों की संभावना है। वहां की नाना-गुणहानि-शलाकाओं का विरलन करके दुगुणा कर परस्पर गुणा करने पर गुणकार राशि होती है—यह अभिप्राय है ।
.०३ द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण
बीइ दियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखखेज्जगुणो॥
टीका-को गणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कारणं पूवं व परूवेदव्वं । सव्वत्थ लद्धिअपज्जत्तयस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स विग्गहगदीए वट्टमाणस्स जहण्णओ उववादजोगो घेत्तव्यो।
-षट० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १४७ । पु० १० । पृष्ठ० ३९७
उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। गुणाकार पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है । इसके कारण की प्ररूपणा पहले के ही समान करनी चाहिए। सब जगह उस भव में स्थित होने के प्रथम समय में रहने वाले व विग्रहगति में वर्तमान ऐसे लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य उपपाद योग को ग्रहण करना चाहिए ।
..४ वीन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण
तीइदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥
टीका–को गुणगारो ? हेट्टिमणाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगुणिय अण्णोण्णब्भत्थरासी।
-षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १४८ । पु० १० । पृष्ठ. ३९७ उससे त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है।
अधस्तन नाना-गुण-हानि-शलाकाओं का विरलन करके द्विगुणित कर परस्पर गुणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो वह यहाँ गुणाकार है। .०५ चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण
चरिदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो। टोका–को गुणगारो ? जोगगुणगारो।
-षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १४९ । पु० १० । पृष्ठ० ३९७ उससे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। गुणकार यहाँ योग-गुणकार अर्थात् पल्योपम का असंख्यातवां भाग है ।
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