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( १०० ) तेउकाइया वाउकाइया सव्वट्ठाणेसु मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु णो रइयाउयं पकरेइ तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ, णो मणुस्साउयं पकरेइ, णो देवाउयं पकरें।
-भग० श ३० । उ १। सू २७
__ सयोगी-काययोगी अग्निकायिक में व वायुकायिक में मध्य के दोनों समवसरण ( अक्रियावादी-अज्ञानवादी) होते हैं। उनमें से वे सिर्फ तिर्यंच का आयुष्य बांधते हैं । नारकी, देव व मनुष्य का आयुष्य नहीं बांधते हैं। '३३ सयोगो द्वीन्द्रिय यावत् चतुरिन्द्रिय और समवसरण में आयुष्यबंध
बेइंदिय-तेइ दिय-चरिदियाणं जहा पुढविकाइयाणं, गवरं सम्मत्तणाणेसु ण एक्कंपि आउयं पकरेइ।
- भग० श ३० । उ१ । सू २७ - सयोगी-वचनयोगी व काययोगी में पृथ्वीकायिक की तरह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय अक्रियावादी-अज्ञानवादी होते हैं। वे तिर्यंच व मनुष्य का आयुष्य बांधते हैं । देव-नारकी का आयुष्य नहीं बांधते हैं । .३४ सयोगी क्रियावादी पंचेन्द्रियतियंच और आयुष्यबंध सेसा जाव अणागारोवउत्ता सम्वे जहा सलेस्सा जहा चेव भाणियवा।
-भग० श ३० । उ १ । सू २९ सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी व काययोगी क्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यच मात्र देव का आयुष्य बांधते हैं। मनुष्य, तिर्यंच व नारकी का आयुष्य नहीं बांधते हैं । •३५ सयोगी अक्रियावादी पंचेन्द्रियतिथंच और आयुष्यबंध .३६ ॥ अज्ञानवादी '३७ ॥ विनयवादी
सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी व काययोगी अक्रियावादी, अज्ञानवादी व विनयवादी पंचेन्द्रिय तिर्यंच चारों प्रकार का आयुष्य बांधते हैं। '३८ सयोगी मनुष्य क्रियावादी और आयुष्यबंध
जहा पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं वत्तव्वया भणिया एवं मणुस्साण वि भाणियन्वाxxx।
-भग० श ३० । उ १। सू २९ क्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यंच के समान सयोगी-मनोयोगी-वचनयोगी व काययोगी मनुष्य-देव का आयुष्य बांधते हैं। मनुष्य-नारकी तिर्यच का आयुष्य नहीं बांधते हैं।
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